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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उत्पन्न होगा, हिन्दुओं और मुसलमानोंमें आन्तरिक एकता स्थापित होगी। भारतको आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी तथा हिन्दुस्तानमें प्रेमके सिवा और कुछ दिखाई नहीं देगा। जगत् प्रेममय है। नाशमें भी उत्पत्तिके बीज हैं।

[कोई कह सकता है] ये सब लम्बी-चौड़ी बातें हैं। भले हों, फिर भी इस दिशामें किया गया प्रयत्न निष्फल नहीं होता; यह धर्मवाक्य है और मैं इसीका अनुसरण करूँगा। किन्तु कोई निराशावादी प्रश्न कर सकता है कि क्या अशिक्षित भारतको -- विशेषतया समाचारपत्र सम्बन्धी जुल्मी कानूनोंके होते हुए -- इस तरहका सन्देश दिया जा सकता है? हमारा उत्तर है: ऐसा व्यक्तिगत अनुभव किसे न हुआ होगा कि प्रेम अज्ञानकी लौहश्रृंखलाओंको तोड़ सकता है? और फिर प्रेम को समाचारपत्र अधिनियम (प्रेस ऐक्ट) का क्या भय? 'नवजीवन 'के व्यवस्थापकों तथा सम्पादकों आदिकी यह प्रतिज्ञा है कि इससे भयभीत हुए बिना जो बात जैसी लगेगी वह उसी रूप में 'नवजीवन' में प्रकाशित की जायेगी। उसकी जमानत जब्त हो जाने अथवा उसके कर्मचारियोंकी स्थिति खतरेमें पड़ जाने के भय से सत्य बात कहने में वह कभी नहीं हिचकिचायेगा लेकिन वह विनयका भी त्याग नहीं करेगा। 'नवजीवन' में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होगा जिसे पूरी तरह सोच-विचारकर न लिखा गया हो; उसमें एक भी निरर्थक विशेषण नहीं होगा। असलमें देखें तो सत्यको विशेषण-रूपी शृंगारकी जरूरत नहीं होती। शुद्ध यथातथ्य वर्णनमें जो कला है वह व्यर्थके विशेषणोंसे दूषित वर्णनमें कदापि नहीं होती।

गुजरातकी माताएँ और विद्वान् 'नवजीवन' का स्वागत करें, आशीर्वाद दें तथा 'नवजीवन' उनके आशीर्वादके योग्य हो, ईश्वरसे यही मेरी प्रार्थना है ।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ७-९-१९१९

६४. खेड़ाकी कहानी

खेड़ाके सम्बन्धमें सर सी० शंकरन नायरकी[१] टिप्पणीके उत्तरमें बम्बई सरकारने जो कहा है उसपर माननीय श्री गोकुलदास कहानदास पारेखने[२] टिप्पणी लिखकर एक और अमूल्य सेवा की है। यह टिप्पणी बहुत लम्बी है इसलिए हम [यहाँ] श्री पारेखके मुद्दों को देकर ही सन्तोष करेंगे। सर शंकरन नायरका यह कहना है कि जो-जो सुधार किये गये हैं तथा लोगोंको सरकारकी ओरसे जो राहतें प्राप्त हुई हैं उसका कारण शिक्षित वर्ग है तथा उसका माध्यम कांग्रेस है। राज्याधिकारियोंने हमेशा यह दोषारोपण किया है कि शिक्षित वर्गने रैयतकी कभी परवाह नहीं की है इसलिए उसे जनताके नेताके

  1. सर सी० शंकरन् (१८५७-१९३४ ); मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायाधीश; वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।
  2. सदस्य, बम्बई विधान परिषद्।