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नडियाद और बारेजडीपर जुर्माना

भी भूल करनेके बाद उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और इस तरह व्यर्थ ही राजा और प्रजाके बीचके भेदको बढ़ाती है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ७-९-१९१९

६५. नडियाद और बारेजडीपर जुर्माना

नडियादके पाटीदार तथा वणिकों और बारेजडीके जमीदारोंपर संकट आ पड़ा है। सरकारकी ओरसे एक प्रस्ताव प्रकाशित हुआ है जिसमें आदेश दिया गया है कि जिला पुलिस अधिनियमके खण्ड २५के अन्तर्गत नडियाद और बारेजडीमें एक सालतक अतिरिक्त पुलिस रखी जाये तथा नडियादकी अतिरिक्त पुलिसका खर्च नडियादके पाटीदारों तथा वणिकोंसे लिया जाये और बारेजडीकी अतिरिक्त पुलिसका खर्च वहाँके और नांदेजके जमीदारोंसे। सरकारने नडियाद में १५,५५६ रुपयेके खर्चका अनुमान लगाया है और बारेजडीका ५,०२८ रु० आँका है। सामान्यतया यह नियम है, जिस व्यक्तिपर जुर्माना किया जाना हो उसे पूर्व सूचना दी जानी चाहिए और उसे जुर्माना देनेके अनौचित्यको प्रमाणित करनेका अवसर दिया जाना चाहिए। इससे भी सुन्दर न्याय तो यह है कि अभियुक्तपर विधिपूर्वक मुकदमा चलाकर निर्देश प्राप्त करना चाहिए। लेकिन सरकारने इन दोनोंमें से कुछ भी नहीं किया है। अभियुक्तोंकी कोई भी पूर्व-जाँच किये बिना उनपर जुर्माना किये जानेका आदेश-भर दे दिया है। नडियादकी नगरपालिकाकी मार्फत यह जुर्माना वसूल किये जानेके सम्बन्धमें सरकारने नगरपालिकाको जो कागजात भेजे हैं उन्हींसे जुर्माना लागू किये जानेकी इस हकीकतका पता चला है।

आइये अब हम इस दण्डकी उत्पत्तिके सम्बन्ध में विचार करें। उसका मूल पुलिस विभागके इन्स्पेक्टर जनरल श्री रॉबर्ट्सनके ७ जूनके पत्रमें तथा खेड़ाके जिला कलक्टर श्री केरके १६ और २६ मईके पत्रोंमें निहित है। इससे पहले २१ अप्रैलको नडियाद नगरपालिकाके प्रमुख श्री गोकुलदास तलाटीको लिखे पत्र में श्री केर नडियादकी जनताको शान्ति बनाये रखनेकी खातिर निम्नलिखित शब्दोंमें बधाई देते हैं -- "मैं सम्मानपूर्वक कहना चाहता हूँ कि चिन्ता और उत्तेजनाके वातावरणमें -- जिससे सौभाग्यवश अब हम निकल आये हैं -- नडियादवासियोंने जिस सुचारु ढंगसे शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखी वह सचमुच सराहनीय है। उन नेताओंको विशेष रूपसे धन्यवाद दिया जाना चाहिए जिन्होंने परिस्थितिको सँभाले रखने के लिए अपने प्रभावका उपयोग किया।"[१] हम मान सकते हैं चूंकि कलक्टर महोदयने अपने विचारोंको प्रकट करनेके लिए श्री गोकुलदासको अपना माध्यम बनाया, इससे वे भी उन व्यक्तियोंमें आ जाते हैं

  1. देखिए "दूसरे पक्षकी भी बात सुनिए", ३०-८-१९१९ । यहाँ प्रस्तुत तथा अन्य उद्धृत अंशोंका अनुवाद गुजरातीसे किया गया है।