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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि नडियादके लोग गुप्तचरका काम नहीं कर सके इसलिए वे उत्तरदायी ठहराये गये। और इस न्यायसे तो जहाँ-जहाँ अपराध हो वहाँ-वहाँ यदि अपराधी पकड़ा न जा सके अथवा पकड़नेके बाद वह भाग निकले और अपराधीको पकड़ने में लोगोंने मदद न की हो अथवा करनेपर भी उनके प्रयत्न निष्फल हो गये हों तो उस स्थानके लोगोंको जुर्माना भरना चाहिए। पाँचवाँ कारण वणिकोंकी जवाबदेही सिद्ध करनेके लिए दिया गया है उसका एक भाग तीसरे कारणमें आ जाता है और दूसरा भाग यह है कि वणिकोंने अकारण दुकानें बन्द कर दीं, इसलिए दूसरोंको भी विवश होकर अपनी दुकानें बन्द करनी पड़ीं। ये दोनों ही बातें गलत है। यह तो सर्वविदित है कि दुकानें बन्द करने में सारे भारतवर्षके लोगोंका एक समान भाग था। दुकानें बिना कारण बन्द की गई - ऐसा कहने में तो कलक्टर महोदय बिलकुल भटक गये हैं; क्योंकि श्री गांधी के सुझावके अनुसार सत्याग्रह आरम्भ किये जानेके चिह्नस्वरूप जगह-जगह दुकानें बन्द कर दी गई थीं और उपवास रखा गया था। इसके अलावा कलक्टर महोदय यह सर्वथा भूल गये जान पड़ते हैं कि ६ और ११ अप्रैलके बीच सरकारने स्वयं एक गम्भीर भूल की - ऐसी भूल जो अगर न की गई होती तो १० से १५ तारीख[१]- तक भारतमें जो खलबली मची वह कभी न मचती। श्री गांधी जब शान्ति बनाये रखने में सरकारको मदद देने जा रहे थे उस समय उन्हें गिरफ्तार करनेका सरकारके पास कोई कारण नहीं था। इसके बावजूद उन्हें गिरफ्तार किया गया; इसे जनता सहन नहीं कर सकी। फलस्वरूप स्थान-स्थानपर हड़तालें की गईं तथा ज्यादतियाँ भी हुईं। सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयोंकी जाँचके लिए तो कोई अदालत होती नहीं तथापि कलक्टर महोदय अपना अभिप्राय तो बता सकते थे; वह न बताकर उन्होंने अपने जिलेके लोगोंका बचाव करनेके बदले उनके साथ अन्याय किया है।

अब यही विचार करना बाकी रह गया है कि [उपर्युक्त परिस्थितियोंमें] नडियाद और बारेजडीके लोगोंको क्या करना चाहिए। हमें तो दोनों स्थानोंमें से एक भी स्थानपर अतिरिक्त पुलिस रखनेकी कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। इन दोनों स्थानोंपर अथवा दूसरी जगहोंपर लोगों की ओरसे जो ज्यादतियाँ हुई उनकी जितनी निन्दा की जाये कम है। ज्यादतियां करके लोगोंने सिर्फ अपने पागलपनका ही प्रदर्शन किया। जनताको फायदा होनेके बदले नुकसान हुआ। जनताका पैसा व्यर्थ फूंक दिया गया, उसपर जुर्माना हुआ और सत्याग्रहके नामको बट्टा लगा। और जो रौलट अधिनियम तुरन्त खत्म हो सकता था उसे रद करवानेके लिए अब और अधिक प्रयत्न करना होगा। इसके अतिरिक्त नडियाद में अपराधियोंका पता नहीं चल सका, यह भी हमारे लिए शर्मंकी बात है। पंजाबमें जिस तरह सरकारकी ओरसे अन्याय किया गया - उसी तरह नडियादमें हमने अन्याय किया है - यह स्वीकार करना एक बात है और अन्यायपूर्वक दी गई सजाको भुगतना यह बिलकुल जुदी बात है। यह नियम कि जिसका अपराध सिद्ध न हो सका हो उसे सजा नहीं दी जानी चाहिए, अखंडित रहना चाहिए। इस नियमके पालनमें राजा और प्रजाका स्वार्थ एवं हित दोनों ही

  1. पंजाब, अहमदाबाद, नडियाद तथा बम्बई में जो व्यापक उपद्रव हुए थे यहाँ उन्हीवेसे तात्पर्य है।