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टर्की

बानी नहीं न्याय माँगते हैं। उनके विरुद्ध जो आरोप लगाये गये हैं यदि उन्होंने सचमुच वे अपराध किये हैं तो हमें दया माँगनेका कोई अधिकार नहीं है और ऐसे मामलोंमें सरकारपर मेहरवानी करनेकी कोई जवाबदारी नहीं है। डॉक्टर सत्यपालका ही उदाहरण लें। इनके पिताने श्री गांधीको जो पत्र लिखा है, उसमें दी गई हकीकत इतनी दुःखद है कि उसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डॉ० सत्यपालने लड़ाईके समय सरकारकी खूब सेवा भी की है। जिस समय षड्यंत्र रचे जानेकी बात कही गई है। उस समय डॉ० सैफुद्दीन किचलू और डॉ० सत्यपालको भाषण देनेकी भी मनाही थी। इसके अतिरिक्त डॉ० सत्यपाल तो उस समय, अर्थात् ३० मार्चको जब साजिश की गई कही जाती है, वहाँ उपस्थित भी नहीं थे। उनके गिरफ्तार किये जानेसे पूर्व अमृतसरमें किसी तरह की खून-खराबी की घटनाएँ नहीं हुई थीं। डॉ० सत्यपालके भाषणोंकी जो रिपोर्ट न्यायालय में पेश की गई थी, वह भी झूठी थी। इस तरह बिना किसी ठोस प्रमाणके योग्य नेताओंको सजायें दी गई हैं। ऐसी स्थिति में स्वतंत्र जाँचके सिवाय और किसी चीज से प्रजाको सन्तोष अथवा न्याय मिल ही नहीं सकता। जनता ऐसे अन्यायोंको सहन नहीं कर सकती। हमें उम्मीद है कि सरकार समय रहते जाँच करनेवाली समितिको नियुक्त करके लोगोंमें व्याप्त अशान्तिको दूर करेगी।

ऐसा हो जाये तो भी जिनके प्रियजन फॉसीपर लटका दिये गये या जेल भुगत रहे हैं उनके कष्ट निवारणकी आवश्यकता बनी रहेगी। स्वयंसेवकोंकी मदद से संन्यासी स्वामी [श्रद्धानन्द] दुःखी परिवारोंके दुःखमें हिस्सा बँटा रहे हैं। उसमें पैसेकी बहुत आवश्यकता है। कलकत्ता तथा बम्बईसे एक-एक लाख रुपयेके वचन मिल चुके हैं। स्वामीजीकी धारणाके अनुसार अभी और पैसेकी जरूरत पड़ेगी। उनके द्वारा दिये गये हिसाबको समाचारपत्रोंमें प्रकाशित किया जा चुका है। हमें आशा है कि सब गुजराती इस पुण्य कार्यमें यथाशक्ति भाग लेंगे। हमें विश्वास है, जिससे जितना बन सकेगा वह उतना देगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ७-९-१९१९

६८. टर्की

टर्कीके प्रश्नका सम्बन्ध भारतके आठ करोड़ मुसलमानोंसे है और जो प्रश्न जनताके चौथाई भागपर लागू होता है वह समस्त हिन्दुस्तानका ही है। जनताके चौथे अंगको चोट पहुँचे और सारी जनतापर उसका असर न हो, यह असम्भव है। यदि ऐसी चोटका असर न हो तो हम एक राष्ट्र नहीं कहे जा सकते, हम एक शरीर नहीं हो सकते। इसलिए हिन्दू व मुसलमान सबका समान रूपसे यह फर्ज है कि वे टर्कीके प्रश्नकी मुख्य-मुख्य बातोंको जान लें। अगस्त १९१४ में जब लड़ाई शुरू हुई उस समय टर्कीकी जो स्थिति थी वही आज भी होनी चाहिए, यह टर्कीकी माँग है, हिन्दुस्तानमें बसनेवाले मुसलमान भाइयोंकी माँग है तथा यह माँग इंग्लैंड में रहनेवाले प्रमुख मुसलमान