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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाइयोंने भी जोरदार शब्दोंमें की है। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री लॉयड जॉर्जके शब्दोंको उद्धृत करते हुए बताया है कि उन्होंने भी [मुसलमानोंकी] इस भावनाको स्वीकार किया था। राष्ट्रपति विल्सनने भी ऐसे ही उद्गार प्रकट किये थे। उनके चौदह सिद्धान्तों तथा पाँच मुद्दोंमें भी यही बात आई है। युद्धमें सम्मिलित हुए दूसरे राष्ट्रोंके अधिकारोंकी बहुत हदतक रक्षा की गई है। तब टर्कीका ही क्या दोष? अभी तक इस प्रश्नका निपटारा नहीं हुआ है और ब्रिटिश समाचारपत्रोंसे ऐसी ध्वनि निकल रही है कि जिससे सारे मुसलमान शंकित हो उठे हैं। उन्हें डर है कि टर्की अर्थात सारी मुस्लिम दुनियाको, मित्रराष्ट्रोंकी ओरसे न्याय नहीं मिलेगा और टर्की साम्राज्यका विभाजन हो जायेगा।

यह प्रश्न मामूली नहीं है। टर्की साम्राज्य [के प्रश्न] के साथ इस्लामका गम्भीर सवाल खड़ा हुआ है। इस्लाम दीन और दुनियावीका भेद नहीं करता। टर्कीके सुल्तान स्वयं इस्लामके आदरणीय खलीफा हैं और यदि सल्तनत चली जाये तो इस्लाम धर्मके अनुसार खलीफाका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता; 'कुरान' की आयतें ऐसी कड़ी हैं। इसलिए सारी मुसलमान जनताके लिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धार्मिक प्रश्न बन गया है।

महाराज बीकानेरने बम्बई में कदम रखते ही कहा है कि श्री मॉण्टेग्यु तथा लॉर्ड सिन्हा आदि इस प्रश्नपर पूरा-पूरा ध्यान दे रहे हैं। कहा जाता है कि लॉर्ड चेम्सफोर्ड भी श्री लॉयड जॉर्जसे जोरदार लिखा-पढ़ी कर रहे हैं। लेकिन केवल जोरदार लिखा- पढ़ीसे ही कार्य सध जायेगा, सो बात नहीं। हमारी मान्यता है, कि श्री मॉण्टेग्यु तथा लॉर्ड चेम्सफोर्डका यह कर्त्तव्य है कि या तो वे मुसलमान भाइयोंको वह न्याय दिलवायें जिसे पानेका उन्हें हक है; या अन्यायके विरुद्ध अपनी आवाज उठाने के विरोधस्वरूप भारत-मंत्री तथा सम्राट्के प्रतिनिधिके अपने ओहदोंको छोड़ दें।

मुसलमानोंका कर्त्तव्य है कि वे अपना मामला शान्तिपूर्वक लेकिन दृढ़तासे समस्त संसारके सम्मुख रखें और बिना झुके उसपर डटे रहें। उसमें अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए और न ही ऐसी कोई बात होनी चाहिए जिससे लगे कि इसमें कमी-बेशी की जा सकती है। उन्हें उसी वस्तुकी माँग करनी चाहिए जिसके बिना यह कहा जा सके, सिद्ध किया जा सके कि इस्लामी जीवन-पद्धति व्यर्थ हो जाती है। जहाँ नीति अर्थात् धर्मका प्रश्न है, जहाँ अन्तरके गहरे भावावेगोंकी बात है, वहाँ समझौतेकी, सौदेबाजी करनेकी अथवा खींचतान करनेकी गुंजाइश नहीं है। सत्य एक ही होता है और अन्ततः सब उसे उसी रूपमें देख पाते हैं। टर्कीके मामलेमें न्याय है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री की प्रतिज्ञा है, राष्ट्रपति विल्सनका वचन है। यदि मित्रराष्ट्रोंका यह दावा खरा हो कि उन्होंने अन्यायके विरुद्ध छोटे राज्योंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए युद्ध किया था तो टर्कीको, मुसलमानोंको अथवा हममें से किसीको भी आशंकित रहनेका कोई कारण नहीं है। लेकिन निःशंक तो वही हो सकता है जो प्रयत्नशील हो। जैसे मुसलमानोंका फर्ज है वैसे ही हिन्दू आदि अन्य जातियोंका भी है। यदि वे मुसलमानोंको अपना आदरणीय पड़ोसी एवं भाई मानते हों तो उन्हें उनकी धार्मिक