पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहनोंको न्याय नहीं मिलता तो दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंके साथ हम वैसा ही व्यवहार करें। अर्थात् दक्षिण आफ्रिकासे अगर कोई भूला- भटका गोरा यात्री इधर आये तो उसे भारतमें प्रवेश न करने दिया जाये, उसे यहाँ जमीन न खरीदने दी जाये तथा भारत-से जो एक-दो टन कोयला दक्षिण आफ्रिका भेजा जाता हो उसे बन्द कर दिया जाये। व्यावहारिक दृष्टिसे विचार करनेपर भी इस सुझावका कोई अर्थ नहीं निकलता। यदि धृष्टता न मानी जाये तो कहूँ कि इस सुझावके अनुसार काम करना "हाथी चले बजार, कुत्ते भौंकेँ हजार" वाली कहावतको चरितार्थ करना होगा। दक्षिण आफ्रिकाके गोरे तो अवश्य ही इसका स्वागत करेंगे। भारतके साथ दक्षिण आफ्रिकाका व्यापार तथा भारतमें दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंकी आबादी इतनी कम है कि हमारे द्वारा यह नीति अपनानेका कोई अर्थ नहीं है। ऐसा कहकर हम न केवल उपहासके पात्र बनेंगे बल्कि अपने भाई-बहनोंके शापके पात्र भी बनेंगे। वहाँ रहनेवाली भारतकी डेढ़ लाख सन्तानोंको अपनी धन-सम्पत्ति छोड़कर हिन्दुस्तान भागना पड़ेगा। अथवा उन्हें हमेशा ही मजदूर बनकर रहना पड़ेगा। और कुछ टन कोयलेका दक्षिण आफ्रिका जाना बन्द हो जायेगा या वहाँके एकाध गोरेके भारतमें प्रवेशपर प्रतिबन्ध लग जायेगा तो इससे उन्हें क्या सन्तोष मिल सकता है? 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने भी, जो इस प्रश्नकी अच्छी वकालत कर रहा है, सर विलियम मेयरके इस सुझावकी हँसी उड़ाई है।

अधिक गहरे उतरनेपर हमें यह भी पता चलेगा कि वैर-भावसे प्रेरित होकर दी गई सजा, प्रतिपक्षी द्वारा किये गये अन्यायकी तुलना में उचित होनेपर भी अन्ततः सजा देनेवालेको ही नुकसान पहुँचाती है। अपनी करतूत मनको खटकती रहती है। एक अन्यायका निराकरण कदापि दूसरे अन्यायसे नहीं हो सकता। अन्यायसे अन्याय दूर नहीं होता। भारतमें डेढ़ लाख गोरे रहते होते और उनके सम्बन्धमें हम दक्षिण आफ्रिकाके समान ही कानून बना सकते और बनाते तो भी इससे डेढ़ लाख भारतीयोंको नष्ट होनेसे कैसे बचाया जा सकता है? "जैसेको तैसा" वाली जो न्याय-नीति है उसमें बराबर यह मान्यता निहित है कि जब हममें भी अपने विरोधीके जैसा व्यवहार करनेकी शक्ति और इच्छा रहती है तो वह हमारे प्रति अन्याय करनेसे डरता है और इसलिए अपना हाथ रोके रहता है। और यह सच है, ऐसा कई बार होता भी है। किन्तु कुल मिलाकर उससे न्याय नहीं होता, - यह सर्वमान्य है। कारण ईंटका जवाब पत्थरसे तथा काँटेसे काँटा निकालनेके प्राचीन कालसे चले आ रहे सिद्धान्तको असंख्य स्त्री-पुरुषोंने आजमाया है फिर भी अभीतक अन्याय किया जाना बन्द नहीं हुआ है; इतना ही नहीं पश्चिमके दूरदर्शी लेखकोंका भी यह कहना है कि यूरोप में विज्ञानकी भारी प्रगति होनेपर भी, और वहाँ साक्षरताका इतना बाहुल्य होनेके बावजूद वैर-भाव एवं अन्यायमें कोई कमी नहीं हुई है। उसके प्रत्यक्ष प्रमाण तो हमारी नजरोंके सामने हैं। किन्तु हम प्रस्तुत विषयसे दूर जा रहे हैं। सर विलियम मेयर द्वारा दिया गया सुझाव ग्राह्य नहीं है, यह सिद्ध करनेके लिए तो इतना ही काफी है कि हमें उनके सुझावमें व्यावहारिक - वैरभावकी - दृष्टिसे कोई अर्थ नहीं दिखाई देता।