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७०. फीजीके संघर्षका महत्त्व

फीजीके प्रश्नमें बहुत सारी बातें समाई हुई हैं। लेकिन इस समय लोकमतको शिक्षित करनेके लिए वस्तुतः एक बातको जानना जरूरी है। भारतसे गिरमिटिया मजदूर फीजी सन् १८७७ में गये। गिरमिटका सीधा अर्थ तो अर्धगुलामी है। यह अर्थ हमारा दिया हुआ नहीं है, बल्कि यह गिरमिटिया भारतीयोंके लिए स्वर्गीय सर विलियम हंटर द्वारा प्रयुक्त किया गया शब्द है। तबसे लेकर आजतक भारतीय मजदूर-स्त्रियोंपर जो अत्याचार होते रहे हैं वे हमारे आलस्य अथवा अज्ञानके कारण ही सम्भव हो सके। हमारे सामने परोपकारी वृत्तिवाले श्री एन्ड्रयूज द्वारा दिया गया साक्ष्य मौजूद है जिससे पता चलता है कि एक-एक स्त्रीको तीन-तीन पुरुषोंकी सेवा करनी पड़ती है।[१] ये तीन तो हुए गिरमिटिया पुरुष, इनके अतिरिक्त जो बाहरसे आ जायें सो अलग। हमने श्री एन्ड्रयूजकी भाषाका अनुवाद किया है लेकिन पाठक इस सेवाका अर्थ सहज ही कर सकेंगे। फीजीके भारतीयों की ओरसे श्री गांधीको जो तार भेजा गया है उसमें माँग की गई है कि इस भयानक अत्याचारको बन्द किया जाना चाहिए। इस तारमें बताया गया है कि उन्हें यह आशा थी कि फीजीकी सरकार चालू गिरमिट प्रथाको बन्द कर देगी लेकिन अब यह आशा व्यर्थ हो गई जान पड़ती है। उन्हें भय है कि सरकारने गिरमिट रद करने के अपने विचारको बदल दिया है। यदि गिरमिट बन्द हो जाये तो अपनी असहाय बहनोंके शीलकी रक्षा हो सकेगी; या कमसे कम हम अपनी जवाबदारीसे तो मुक्त हो सकेंगे। यह हमारा स्पष्ट कर्त्तव्य है। बिस्तर के नीचे पड़े हुए साँपकी जबतक हमें खबर न हो, तबतक और केवल तबतक ही, हम निश्चिन्त होकर सो सकते हैं। लेकिन इस जहरीले साथीका पता चलते ही जैसे हम चौंक उठते हैं, फीजीकी गिरमिट प्रथाके सम्बन्धमें भी हमारी ठीक यही स्थिति होनी चाहिए। फीजीमें रहनेवाली बहनोंकी भयंकर स्थितिसे हम जबतक अवगत नहीं थे तभी तक हम निश्चिन्ततासे सो सकते थे, बैठे रह सकते थे। लेकिन अब तो हमारा एक मिनट भी आराम से बैठे रहना पाप है। जिस समय सारा हिन्दुस्तान इस हकीकतको समझ लेगा उस समय फीजी में चलनेवाली यह अनीति एक पल भी नहीं टिक सकेगी। कोई कानूनशास्त्री यह भी कह सकता है कि कानूनन

  1. मार्च १९१८ में जिन दिनों भारत-मंत्री एडविन मॉण्टेग्यु भारतमें थे उन दिनों श्री एन्ड्यूज उनसे मिले थे और उन्होंने लॉर्ड मॉण्टेग्युके सम्मुख फीजी सरकारको डाक्टरी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया था कि "जब एक भारतीय गिरमिट स्त्रीको तीन-तीन गिरमिटिया पुरुषोंके साथ-साथ बाहर के कुछ लोगोंकी भी सेवा करनी पड़ती हो तो उसके परिणामस्वरूप होनेवाले रोगोंके बारेमें सन्देहको कोई गुंजाइश ही नहीं रहती।" "इतना ही काफी है", मॉण्टेग्युने कहा “अब आप चाहे जो माँग सकते हैं।" जनवरी १, १९२० को अन्तिम गिरमिटिया मजदूरोंको मुक्त कर दिया गया था। चार्ल्स फ्रीयर एन्ड्रयूज