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वाइसरायका भाषण

अधिक शोभनीय, बल्कि नीतिपूर्ण भी होती। फिर भी मेरी नम्र सम्मतिमें सरकार इस सम्बन्धमें जो विधेयक पेश करना चाहती है, उसका पूरा पाठ जबतक सामने नहीं आ जाता तबतक इस विषय में कोई विचार व्यक्त न करना ही अच्छा होगा।

रौलट अधिनियम और उसके बाद

अब मैं अप्रैल महीनेकी घटनाओंके सम्बन्धमें वाइसराय महोदयके भाषणके उस अंशको लेता हूँ जिसपर विवादकी गुंजाइश है। उनके शब्द ये हैं:

पिछले सत्र में जिस समय रौलट विधेयकपर विचार किया जा रहा था उस समय कुछ माननीय सदस्योंने मुझे कुछ धमकीके स्वरमें चेतावनी दी थी कि अगर यह विधेयक कानूनके रूपमें पास कर दिया गया तो बहुत ही गम्भीर ढंगका आन्दोलन होगा। मेरा खयाल है कि माननीय सदस्यगण इस बातको समझेंगे कि कोई भी सरकार किसी आन्दोलनके भय से ऐसी किसी नीतिसे विचलित नहीं होगी जिसका अनुसरण करना वह आवश्यक मानती है। फिर भी कुछ ऐसे लोग तो थे ही जिन्होंने सोचा कि इस धमकीको चरितार्थ करना जरूरी है, और फलतः वे निन्दनीय घटनाएं घटित हुई जिनकी अब जाँच होनी है। मैं उन घटनाओंपर विचार करना नहीं चाहता, लेकिन यह बता देना चाहूँगा कि उनकी गम्भीरताको घटाकर आँकना बहुत आसान है। आज जब ये उपद्रव शान्त कर दिये गये हैं, तब जिन लोगोंपर उस समय स्थितिसे निबटने की जिम्मेदारी थी, उनमें से कोई ऐसा नहीं है जो उस समयकी विभीषिकाको भूल सकेगा। हत्याएँ की गईं, आगजनी हुई, टेलीफोन के तार काटे गये, रेलकी पटरियाँ उखाड़ी गई और कुछ दिनोंतक मेरे पास पंजाब सरकारके साथ सम्पर्क स्थापित करनेका एकमात्र निश्चित उपाय वायरलेस ही रह गया था। जिन जिलोंको इन मुसीबतोंसे होकर गुजरना पड़ा उन जिलोंमें जाकर कोई आज भी प्रत्यक्ष देख सकता है कि हमें जिस परिस्थितिका उस समय सामना करना पड़ा था वह कितनी गम्भीर, और जो बरबादी हुई वह कितनी ज्यादा थी। और जो लोग इस मुसीबतकी गम्भीरताको घटाकर देखनेकी कोशिश करेंगे उनसे में यही कहूँगा कि "आप इन जिलोंमें जाइये और लोगोंने अपने विवेकको ताक पर रखकर जो बरबादी मचाई थी उसकी निशानी अपनी ही आँखों देख आइए।"

वाइसराय महोदयने भारतीय विधायकों द्वारा "धमकीके स्वरमें चेतावनी" देनेकी जो बात कही है, उसका क्या मतलब है? यदि किसी चेतावनीको कार्यरूपमें परिणत कर दिया जाता तब क्या वह "धमकी" हो जाती है? जो सवाल स्वयं परमश्रेष्ठ द्वारा निर्मित आयोगके सामने पेश किया जानेवाला है उसके सम्बन्धमें ऐसे विचार व्यक्त करके आयोगकी रायको प्रभावित करना क्या उचित है? यह चेतावनी मित्रोंकी चेतावनी थी। सदस्योंको इस बातकी पूरी छूट थी कि वे अपनी चेतावनीको कार्यरूप देकर देशमें एक ऐसा आन्दोलन प्रारम्भ करें,