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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिसका सरकारपर प्रभाव पड़ता, और सच बात तो यह है कि यदि सरकारने इसी बीच जल्दबाजी में मूर्खतावश स्थितिको बिगाड़ न दिया होता, तो सरकारपर उक्त आन्दोलनका वांछित प्रभाव पड़ चुका होता। वाइसराय महोदय १० अप्रैलके बादकी हिंसात्मक घटनाओंका सम्बन्ध उस व्यवस्थित, पवित्र और सुस्पष्ट आन्दोलनसे क्यों जोड़ रहे हैं जिसकी चरम परिणति ६ अप्रैलको राष्ट्रीय अपमान और प्रार्थना दिवसके रूप में हुई है? इस हालत में, उत्तरमें हमारा यह कहना क्या उचित नहीं होगा कि सरकारने जब देखा कि उसका दुलारा कानून विफल हुआ जा रहा है तो वह अपना आपा खो बैठी, और अपनी जानकारी तथा उचित- अनुचितके विचारको ताकपर रखकर, उसने ऐसे बेढंगे काम किये जिनका परिणाम उस खेदजनक हिंसाके रूपमें प्रकट हुआ जिसमें कितने ही निरीह यूरोपीयों और भारतीयोंको अपने प्राण गँवाने पड़े। यह निर्णय करना तो आयोगका काम है कि भीड़ने जो हिंसात्मक कार्रवाई की वह रौलट अधिनियमको लेकर छेड़े गये आन्दोलनका परिणाम थी, या उसने सरकारके आचरणसे उत्तेजित होकर ऐसा किया। वाइसराय महोदयने स्वयं कहा है कि उन्होंने पंजाब सरकारको पूरी छूट दे रखी थी, बल्कि उसकी सिफारिशपर उन्होंने आदेश भी जारी किये थे। मैं पूरे आदरके साथ कहना चाहूँगा कि इस लिहाज से वे भी आयोगके निर्णयार्थ उसी कठघरे में खड़े होने लायक हैं जिसमें पंजाब सरकार खड़ी है।

वाइसराय महोदयने मेरे शब्दोंको सन्दर्भसे हटाकर और उसे एक सर्वथा भिन्न परिस्थिति से जोड़कर मेरे साथ घोर अन्याय किया है। उन्होंने अहमदाबादके श्रोताओंके सम्मुख १४ अप्रैल को दिया गया मेरा वह भाषण पूरा-पूरा नहीं पढ़ा है जिसके एक अंशको उन्होंने अपने भाषण में उद्धृत किया है। जनताके प्रति और मेरे प्रति भी उनका फर्ज था कि उन्होंने यह भाषण मँगवा लिया होता। फिर वे उसमें देख सकते थे कि मेरे भाषणका सम्बन्ध सिर्फ अहमदाबादकी घटनाओंसे था, जिनकी मैंने स्वयं जाँच की थी। उस भाषणसे उन्हें मालूम हो जाता, और में अब भी उन्हें यह दिखा सकता हूँ कि मैंने जो कुछ कहा उसका सम्बन्ध अहमदाबाद और केवल अहमदाबादकी घटनाओंसे ही था - वीरमगाँव या खेड़ाकी घटनाओंसे भी नहीं, क्योंकि उनके सम्बन्धमें मुझे उस समय कोई जानकारी थी ही नहीं। वाइसराय महोदयने मेरे मत्थे जो विचार मढ़ा है, वैसा कोई विचार में रखता हूँ, इस बात से मैं बिलकुल इनकार करता हूँ। पंजाबके सम्बन्धमें तथा उस प्रान्तके "शिक्षित और चालाक आदमियों" के बारेमें में अब भी निश्चित और सीधे तौरपर कुछ नहीं जानता।[१] अतः मैं अपने अहमदाबादके

  1. अपने भाषण में वाइसरायने कहा था कि "अब मेरी और पंजाबके माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयको भी इच्छा है कि उन अभागे और गुमराह लोगोंके प्रति दयाका व्यवहार किया जाये जिन्होंने श्री गांधीके शब्दों में, 'शिक्षित और चालाक आदमी अथवा आदमियों' के बहकावे में आकर मारकाट मचाई।" इस वक्तव्यको अपने ६-९-१९१९ के अंकमें उद्धृत करते हुए अमृतबाजार पत्रिकाने इसपर आपत्ति उठाई थी और लिखा था कि अगर गांधीजीका सचमुच ऐसा विचार हो तो वे अपनी जानकारीका स्रोत बतायें, अन्यथा वाइसराय महोदयके कथनका प्रतिवाद करें। स्पष्ट ही, यहाँ गांधीजीने जो-कुछ लिखा उससे मामला साफ हो जाता है।