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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनरल स्मट्ससे व्यक्तिगत सम्बन्ध है। वे चाहें तो अपनी सूझ-बूझ और नीतिज्ञताके बलपर एक न्यायसम्मत और सम्मानपूर्ण समझौते के लिए कई तरहसे रास्ता तैयार कर सकते हैं। स्वभावतः मेरी यह मान्यता है कि सर बेंजामिन रॉबर्ट्सन तो भारत सरकारके प्रतिनिधिकी हैसियतसे उसके मामलेको दक्षिण आफ्रिकी सरकारके सामने पेश करने और जो आयोग नियुक्त किया जानेवाला है उसकी आम तौरसे सहायता करनेके लिए जायेंगे ही, लेकिन साथ ही श्री मॉण्टेग्युकी यह घोषणा कि आयोग में भारतीयोंके हितोंका प्रतिनिधित्व करनेके लिए भी दो सदस्य नियुक्त किये जायेंगे, अब भी ज्योंकी-त्यों बनी हुई है और शीघ्र ही इन दो उपयुक्त सदस्योंके नाम घोषित कर दिये जायेंगे। वाइसराय महोदयके इस उद्गारसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि "इस समय हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम ऐसा कुछ न कहें, ऐसा कुछ न करें जिससे मौजूदा भावनाओंमें कटुता उत्पन्न होने और समझौतेकी सम्भावना कठिन हो जानेकी आशंका हो।"

फीजीके गिरमिटिया

फीजीसे सम्बन्धित घोषणाके विरुद्ध भी कुछ नहीं कहा जा सकता, बल्कि उससे भी बड़ा सन्तोष प्राप्त होता है, और हम ऐसी आशा कर सकते हैं कि वह दिन दूर नहीं, और निश्चय ही वह दिन इस वर्ष की समाप्ति के पूर्व ही आना चाहिए, जब यह प्रथा समाप्त हो जायेगी।

लेकिन हमें दक्षिण आफ्रिका और फीजीके सवालपर निश्चिन्त होकर नहीं बैठ जाना है बल्कि तबतक जाग्रत और प्रयत्नशील रहना है जबतक कि फीजीका यह शर्मनाक कलंक बिलकुल समाप्त नहीं हो जाता और दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके सिरपर छाये विनाशके बादल पूरी तरह छँट नहीं जाते।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १०-९-१९१९

७५. लाला लाभूराम

मुझे पंजाबके मामले समय-समयपर देखने पड़े हैं, वे बुरे हैं; लाला लाभूरामका मामला भी कुछ बेहतर नहीं है। अन्यायका एकाध मामला तो सर्वोत्तम व्यवस्था सम्पन्न समाज और आदर्श शासन में भी होगा। परन्तु जब अन्याय नित्य-प्रति होने लगे तो ईमानदार लोगोंको न केवल उसी समय उसका विरोध करना चाहिए वरन् ऐसी शासन प्रणालीको जिसके अन्तर्गत ऐसा सुनियोजित अन्याय सम्भव होता है अपनी मदद देनी तबतक के लिए बंद कर देनी चाहिए, जबतक कि वह प्रणाली बदल न जाये और वैसा सुनियोजित अन्याय हो सकना असम्भव न हो जाये। तस्वीरको अतिरंजित करनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है। दो जातियोंके पारस्परिक सम्बन्धोंमें तनाव पैदा करनेका मेरा इरादा बिलकुल नहीं है। और यदि मेरे चुप रहनेसे उत्तेजना उत्पन्न