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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसे मामलोंमें किसी निष्कर्षपर पहुँचनेमें अभियुक्तका सामाजिक दर्जा वस्तुतः बड़ा महत्त्व रखता है और में दावा करता हूँ कि समाजमें लाला लाभूरामका दर्जा ऐसा ही है; अदालत में उनकी स्थितिको मजबूत रखनेके लिए वह पर्याप्त होना चाहिए था।

परन्तु पाठक चाहें तो उनकी सम्माननीयताकी दलीलको भूल जायें। शायद विरोधियों की - पंजाबकी अदालती कार्रवाइयोंके समर्थकोंकी - यह दलील अनुचित नहीं होगी कि जब पंजाबके अच्छेसे अच्छे लोगोंपर भी बहुत सन्देह किया जा रहा था और उन्हें विगत अप्रैलके उपद्रवोंमें घसीटा जा रहा था, तो सम्माननीयताके प्रश्नपर ध्यान नहीं दिया जा सकता। परन्तु पंजाबके न्याय आयोग इससे कई गुना आगे बढ़ गये। जैसा कि इन पृष्ठोंके पाठकोंने अबतक देख लिया होगा, उन्होंने कई मामलों में प्रायः बचाव पक्षके सबूतोंको पूराका-पूरा ही अस्वीकार कर दिया है। श्री लाभूराम २० अप्रैलको अर्थात् कथित अपराधके बाद आठवें दिन गिरफ्तार किये गये थे। एक पुलिस अधिकारीको एक साथ मिलकर मारनेका आरोप जिन सौ आदमियोंपर लगाया गया था, उनमें एक वे भी माने जाते हैं। वे इस अधिकारीसे पहलेसे परिचित नहीं थे और न ही अभियोग पक्षका एक भी गवाह ऐसा था जो पहले से अभियुक्तोंको जरा भी ढंगसे जानता रहा हो। ऐसे में यदि सर्वथा असम्भव नहीं तो यह नितान्त कठिन तो है ही कि कई हजारकी उत्तेजित भीड़में से आदमियोंको पहचान लिया जाता। जिस पुलिस डायरीमें हमलावरोंके नाम दर्ज किये गये थे उसमें श्री लाभूरामका नाम नहीं है। अभियोग पक्षके ११ गवाहोंमें से ६ ने अभियुक्त लाभूराम के बारेमें कुछ नहीं कहा। श्रीमती लाभूराम कहती हैं कि "गवाह, जिन्होंने याचिका देनेवाली (श्रीमती लाभूराम) के पतिकी शिनाख्त की, पुलिस कर्मचारी हैं या पुलिस में दिलचस्पी रखनेवाले हैं। उनमें से अधिकांश मार्शल लॉ (फौजी-कानून) के अन्य मामलोंमें भी अभियोग पक्षके गवाह बनकर अदालतमें आ चुके हैं।" यदि यह कथन सत्य है तो अभियोग पक्षके लिए बहुत हानिकर है । इसका अर्थ यह है कि वे पेशेवर गवाह थे। चूँकि अभियुक्त घटनाके आठ दिन बाद गिरफ्तार किया गया था इसलिए कोई भी सोचेगा कि अभियोग पक्ष इस विलम्बका कुछ कारण बतायेगा। यही बात श्रीमती लाभूराम अपनी याचिकामें कहती है: "शिकायतकी बहीमें चूंकि याचनाकर्त्रीके पतिका नाम दर्ज नहीं किया गया था अतः पुलिसको उनकी सहापराधिताका पता कब और कैसे लगा, यह नहीं बताया गया।" अभियोग पक्षके मामलेका यह एक नमूना है। बचाव पक्षके मामलेमें बहुत कुछ है। "लाहौरके एक सुविख्यात चिकित्सक डॉ० बोधराज, डॉ० भोलाराम और उनके कम्पाउन्डरने बयान दिया कि कथित हमले के समय लाभूराम अपने बीमार बेटेकी चिकित्साके सिलसिले में उनके साथ व्यस्त थे।"

पाठकों को यह जानकर धक्का-सा लगेगा कि श्री लाभूरामकी सम्पत्ति जब्त करके निर्वासनकी अवधी घटाकर अब १४ सालकी कैदको सजा दी गई है। यद्यपि मैं एक पत्नीके उस दुःख और व्यथाको जो उसको अपने पतिसे व्यर्थ ही वियोग होनेसे होती है, अच्छी तरह समझ सकता हूँ और हमदर्दी करता हूँ, और इसीलिए जब कि श्रीमती लाभूरामकी यह याचना कि यदि पूरी तरह बरी करना सम्भव न हो तो