पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२७
सत्याग्रह

दण्ड कम कर दिया जाये, समझमें आती है। लेकिन दण्डमें जो कमी की गई है। उससे मुझे जरा भी सन्तोष नहीं हुआ है। श्री लाभूराम कोई बच्चे नहीं है। वे एक दुनियादार और सुसंस्कृत आदमी हैं और अपने उत्तरदायित्वको जानते हैं। यदि उन्होंने एक ऐसे निर्दोष व्यक्तिपर कायरतापूर्ण हमलेमें भाग लिया, जो अपने कर्त्तव्यका पालन कर रहा था, तो उन्हें कठोर दण्ड मिलना ही चाहिए और वे दयाके पात्र नहीं हैं। क्योंकि वैसी स्थिति में उन्होंने अपने इस जुर्म में झूठी गवाही देनेका जुर्म भी जोड़ लिया है। अतएव यदि उनका पक्ष सच्चा नहीं है तो वे दयाके पात्र नहीं हैं और यदि वह सच्चा है तो न्याय पूर्णतः तभी सन्तुष्ट होगा जब वे रिहा हो जायेंगे।

मैं अदालतके उस अति कुत्सित तरीकेपर कुछ नहीं लिख रहा हूँ जो उसने "विद्रोह-की स्थिति" को कानूनी तौरपर ध्यान में रखकर अपनाया है। १२ अप्रैलको लाहौरकी जो स्थिति थी उसे विद्रोहकी स्थिति मानना, और सरकारकी एक फौजी घोषणाको न्यायके मामले में इस तरह प्रयोग करने योग्य प्रमाणपत्र मानना वास्तवमें कानूनी शब्दोंका दुरुपयोग करना है। अदालत के सामने जो सबूत आये उनसे सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़नेकी पुष्टि नहीं होती। अभी हालमें लिवरपूलके लोगोंने जो कुछ किया वह बादशाही मसजिदवाली सभाके मुकाबले कहीं ज्यादा उग्र कार्य था। परन्तु जिसका अरसे से इन्तजार था, अब उस आयोगकी नियुक्ति हो गई है और यदि उसको सजाओं-पर पुनर्विचार करनेका अधिकार दिया गया है, तो आयोगके सदस्योंको श्री लाभूरामके जैसे मामलोंपर पुन: निर्णय देनेका अवसर मिलेगा। परन्तु पंजाब सरकार तथा भारत सरकार से भी मेरा निवेदन है कि जिन मामलोंमें केवल लिखित सबूतोंसे यह जाहिर हो जाता है कि न्याय नहीं मिल पाया, वहाँ उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आयोगकी आड़ लिये बगैर अभियुक्तोंको अपने-आप रिहा कर दें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १०-९-१९१९

७६. सत्याग्रह

[सितम्बर ११, १९१९][१]

सत्याग्रहके सम्बन्धमें हम लोगों तथा अंग्रेजोंमें अभीतक इतनी भ्रान्ति फैली हुई दिखाई देती है कि इसके बारेमें, हालाँकि में बहुत-कुछ लिख और बोल चुका हूँ, फिर भी पुनरुक्ति दोषके बावजूद कुछ कहना आवश्यक समझता हूँ।

सत्याग्रह शब्दकी रचना अमुक प्रवृत्तिको सूचित करनेके लिए दक्षिण आफ्रिका में की गई थी। वहाँ हमारे भाई जो महान् संघर्ष कर रहे थे उसे पहले तो गुजरातीमें भी सब कोई "पैसिव रेजिस्टेंस" के रूप में जानते थे। एक बार मैं अंग्रेजोंकी एक सभामें

  1. यह लेख सर्वप्रथम बम्बईसे प्रकाशित होनेवाले गुजराती दैनिक साँझ वर्तमानके पटेटी अंक प्रकाशित हुआ था। १९१९ में पटेटी (पारसियोंका नया साल) ११ सितम्बरको पड़ा था।