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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
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अहिंसा से मेरा मतलब इतना ही है कि जिससे हम न्याय प्राप्त करनेकी आशा रखते हैं उसके प्रति कोई वैरभाव न रखें, उसे मारकर अथवा किसी भी प्रकारकी क्षति पहुँचाकर उससे काम करानेकी इच्छा न करें बल्कि अपने निश्चयपर अडिग रहते हुए किन्तु विनयपूर्वक हम अपना कार्य करें। तथा इस तरहके सुधार करानेके लिए सिर्फ इतनी ही अहिंसाकी जरूरत है।

जब लोग सत्याग्रहको अंगीकार कर लेंगे तब हमारी समस्त प्रवृत्तियाँ एक भिन्न स्वरूप धारण कर लेंगी। हम बहुत भारी पचड़ोंसे, आडम्बरयुक्त भाषणोंसे, प्रार्थना-पत्रोंसे, अनेक प्रस्तावों और प्रपंचोंसे बच जायेंगे। मुझे तो राष्ट्रकी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक उन्नति जिस हदतक सत्याग्रहमें दिखाई देती है उस हदतक किसी अन्य वस्तुमें नहीं दिखाई देती।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १४-९-१९१९

७७. पत्र : महादेव देसाईको

गुरुवार [सितम्बर ११, १९१९][१]

भाईश्री महादेव,

तुम्हारा पत्र और टिप्पणियाँ आदि मिलीं। दण्डविमुक्ति[२] (इंडेम्निटी) के बारेमें तुम्हारी दलीलोंपर तो हम ट्रेनमें ही विचार कर चुके थे और निर्णयपर पहुँच गये थे। फिर भी वह पैराग्राफ निकाल दिया तो कोई हर्ज़ नहीं। उसके बारेमें हम यदि फिर लिखना चाहेंगे तो लिख सकेंगे।

पोलकका पत्र भयंकर है। यदि राजाओंकी जांच न हुई तो फिर कमीशनका क्या उपयोग रहा। यह तो एक महत्त्वपूर्ण बात है और इसे यों ही उड़ा दिया गया है।

'दुर्गा' के साथ 'गौरी' तो मुझे भी खटका। लेकिन लिख गया और छपनेके बाद देखा तब सूझा। 'मणि' के साथ भी मैंने 'गौरी' जोड़ा था, फिर काट दिया। 'दुर्गा महादेव' जँचा नहीं। लेकिन में मानता हूँ कि जँचने-न-जँचनेका विचार हम नहीं कर सकते। दूसरी जो त्रुटियाँ तुमने बताई हैं, वे दूर हो सकती थीं। मैंने वे सब भाई इन्दुलालको बता दी हैं।

कलकी अपेक्षा आज तबीयत कुछ ठीक है।

शनिवारको वहाँ पहुँचूँगा।

बापूके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ११४०५) की फोटो नकलसे।

  1. दुर्गागौरी और मणि द्वारा लिखित जिन लेखोंका पत्रमें उल्लेख है वे ७-९-१९१९ को प्रकाशित नवजीवन के प्रथम अंकमें छपे थे। पत्र उसके बाद पड़नेवाले गुरुवार, सितम्बर ११ को लिखा गया होगा।
  2. देखिए "वाइसरायका भाषण", १४-९-१९१९ और "दण्डविमुक्ति विधेयक", २०-९-१९१९