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८०. गुजरातीमलका मुकदमा


गुजरातीमल अठारह सालकी उम्रका एक लड़का है जिसे मिडिलसे अधिक शिक्षा नहीं मिली। सोलह सालकी उम्र में उसने फौजी विभागमें एक 'ड्रेसरके' रूपमें अपनी नियुक्ति करा ली। मुल्तान छावनीमें लगभग एक वर्ष काम करनेके बाद वह मिस्र गया और वहाँ भी एक साल नौकरीमें बिताया। इसके बाद वह एक महीनेकी छुट्टी लेकर पंजाब लौटा। ८ अप्रैलको वह हाफिज़ाबाद से पाँच मील दूर अपने गाँव मधरानवाला पहुँचा। वह गाँवमें ही रहा और अपनी दुकानकी मरम्मत कराता रहा। परन्तु गुजरातीमलका ७० वर्षीय वृद्ध पिता इस प्रकार लिखता है: "हम अचम्भे में पड़ गये जब पुलिसके कुछ आदमी उसके नाम वारंट लेकर १६ तारीखको वहाँ आये और उन वारंटोंके मुताबिक उसपर अभियोग चलाया। हम बिलकुल आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि हम समझ नहीं पाये कि मामला क्या है।" यह उस तरहका मामला नहीं है जिनमें कोई भी अनजान व्यक्ति केवल उन गवाहियोंको, जिन्हें 'यंग इंडिया' के पिछले अंक में प्रकाशित किया गया था, पढ़कर पक्के निर्णयपर पहुँच सके। स्मरण रहे कि गुजरातीमलका मुकदमा उन उन्नीस मुकदमोंमें से एक है जिनकी सुनवाई एक साथ हुई। करमचन्दके[१] मामलेके सम्बन्धमें फैसलेकी व्याख्या करनेका मौका मुझे मिल चुका है और उस फैसलेके बारेमें मैंने जो कुछ कहा है वह इस मामलेपर भी स्वाभाविक रूपसे वैसे ही घटित होता है जैसे कि बालक करमचन्द के मामलेपर। परन्तु गवाहियोंको पढ़कर किसी ऐसे निश्चित निष्कर्षपर पहुँच सकना सम्भव नहीं है कि बचाव पक्ष द्वारा घटनाके समय अन्य स्थानपर होनेकी दलील सिद्ध हो गई थी। जैसा कि पाठकोंने देखा होगा, पूरी गवाही कुछ ऐसी काट-छाँट करके ली गई है कि क्या छोड़ दिया गया है, किसीकी समझमें नहीं आ सकता। गवाहियोंसे यह भी स्पष्ट है कि अभियोग पक्षके गवाह अधिकतर पुलिसके आदमी हैं या पुलिससे सम्बन्धित हैं, और यह भी स्पष्ट होता है कि अभियुक्त रंगे हाथों नहीं पकड़े गये वरन् उनमें से अधिकांश घटनाके कुछ समय बाद पकड़े गये थे। निश्चय ही गुजरातीमल, जो प्रमुख वक्ता और मारनेवालोंमें एक बताया जाता है, रंगे हाथों नहीं पकड़ा गया था बल्कि कथित हमले के दो दिन बाद पकड़ा गया। गुजरातीमलको फाँसीका हुक्म सुनाया गया। बाद में फाँसीकी सजा घटाकर निर्वासनकी कर दी गई और अब जैसा कि उसके पिताने सुना है यह सजा और घटाकर सात सालकी सख्त कैद कर दी गई है। अठारह सालके एक लड़केको जो अपना अपराध अस्वीकार करता है, जो घटना-स्थलपर अपनी उपस्थितितक से इनकार करता है, और जिसने अभी हालतक सरकारकी सेवा की है, उसे बेसाख गवाहोंकी शिनाख्तके अत्यन्त सन्दिग्ध आधारपर फाँसीका हुक्म सुना देना अत्यन्त गम्भीर बात है।

  1. देखिए "दोषी नहीं, अन्यायके शिकार", ३-९-१९१९।