पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन टिप्पणियोंके साथ में गुजरातीमलके पिता द्वारा प्रस्तुत तथ्योंका सारांश भी देता हूँ और सादर निवेदन करता हूँ कि यदि उसके पिताके दिये हुए तथ्य सच हों तो वह बिना और जाँच-पड़तालके रिहा कर दिये जानेका हकदार है। वैसे उन तथ्योंके न होनेपर भी पूरे मामलेकी पूरी तरहसे जाँच-पड़तालकी जरूरत है। उसके पिताका कहना है कि "घटनाके पाँच हफ्ते बाद २३ मईको जिलेके डिप्टी कमिश्नरने सभी निवासियोंको एक जगह इकट्ठे होनेका हुक्म दिया ताकि अभियोग-पक्षके गवाह और लेफ्टिनेंट टैंटम भी शिनाख्त करें।" गुजरातीमल भी भीड़में था। इसके आगे पिताके बयानका सबसे महत्त्वपूर्ण अंश आता है: "अभियोग-पक्षके गवाह सं० ३, ४, ७, ८, ९, १५, १६, १८, १९ जिन्होंने बादमें उसके खिलाफ गवाही दी, इस अवसरपर इनमें से एक भी उसकी शिनाख्त नहीं कर सका और न लेफ्टिनेंट टैंटम ही शिनाख्त कर सके।" यदि यह सच है तो निश्चय ही गुजरातीमलपर गलत अभियोग लगाया गया है। और जब हम इस तरहके दहलानेवाले बयान पढ़ते हैं जैसा कि अभियोग-पक्षके गवाह सं० १३ का है तो हम शिनाख्तके पूरे सबूतको कहाँतक विश्वसनीय मानें। बयान इस प्रकार है: "श्री टैटमने करमसिंह, जीवनकिशन और मूलचन्दकी शिनाख्त की। श्री टंटमने मुझे भी मारनेवालोंमें से एक बताया और जब डिप्टी कमिश्नरने कहा कि यह तहसीलदार है तो श्री टैटमने कहा कि जो आदमी मुझे याद आ रहा है वह इससे ज्यादा मोटा था।" यदि यह सच है - और निश्चय ही अभियोग- पक्ष इसकी सचाईपर सन्देह नहीं कर सकता तो यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें अभियोग-पक्ष द्वारा पेश की गई शिनाख्तको गवाहियोंके विश्वसनीय होनेपर गम्भीर सन्देह अवश्य होगा। उसके पिताका यह भी कहना है कि अभियोग-पक्षका गवाह सं० ३ कहता है कि गुजरातीमलने स्टेशनपर एक व्याख्यान दिया, जबकि अभियोग-पक्षका गवाह सं० १६ कहता है कि व्याख्यान ज्ञानसिंहने दिया। यह गड़बड़ी लिखित गवाहियोंसे प्रमाणित की जा सकती है। पिता फिर कहता है कि अभियोग-पक्षके गवाह सं० १५ने, जो ३ मईको गुजरातीमलको पहचान नहीं सका था, मुकदमे में कहा कि गुजरातीमल एक झंडा लिये था, आदि। पिता पहले भी कई याचिकाएँ अधिकारियोंको दे चुका है। वह एक गरीब आदमी है और अभियुक्त एक महत्त्वहीन लड़का है। इसलिए भी मेरी राय में मामलेकी खोजपूर्ण छानबीनकी और ज्यादा जरूरत है। वाइसराय महोदयने अपने भाषण में कृपापूर्वक कहा था कि "जो मामले भारत सरकारके सामने आये हैं उनके बारेमें मुझे यह दावा करनेमें कोई झिझक नहीं है कि उनपर बहुत अधिक सावधानीसे विचार किया गया और जितनी जल्दी हो सकता था हुक्म सुना दिया गया।" मेरे सामने जो पत्र है वह बताता है कि पिताने महामहिमको भी याचिका दी थी। यह पूछना गुस्ताखी नहीं होगी कि पिताकी याचिकामें सरकारकी प्रतिष्ठाको गम्भीर धक्का पहुँचानेवाले बयानोंपर "अत्यन्त सावधानीसे विचार करने" का परिणाम क्या निकला। यदि उसके बयान बेकार समझे गये तो भी उसे यह जाननेका अधिकार था और अब भी है कि उनका फैसला किस आधारपर किया गया।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १३-९-१९१९