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८१. बहनोंसे [-१]

सितम्बर १४, १९१९[१]

जिसमें हिन्दुस्तानका उद्धार अन्तर्निहित है और जिसके बिना भारतका उद्धार नहीं हो सकता ऐसी महत्त्वपूर्ण लेकिन एक सरल बात मुझे आपसे कहनी है। पुरुष अपनी मूढ़तावश स्त्रीके प्रति अपने कर्त्तव्यको भूल जाता है तो क्या इसलिए स्त्रीको भी स्त्रीके प्रति अपना फर्ज भूल जाना चाहिए?

मुझे दाहोद से एक पत्र मिला है; उसमें जो बात लिखी है वह हम सबके लिए लज्जाजनक है। संवाददाता कहता है कि ढेढ जातिकी स्त्रियाँ, जिन्हें घरोंमें कोई काम नहीं मिलता, बाहर नौकरी करने जाती हैं और वहाँ उन स्त्रियोंका शील भंग किया जाता है। इस बातको इन बहनोंके दीन-हीन पुरुष और सगे- सम्बन्धी जानते हैं, लेकिन सह रहे हैं। इस जातिके लिए मैंने 'ढेढ' शब्दका प्रयोग किया है लेकिन वे बुनकर हैं। कुछ एक बुनकरोंको ढेढ क्यों कहा जाता है, यह मैं नहीं जानता। लेकिन यदि हम इस बातको हमेशा याद रखें कि ऐसा स्वच्छ धन्धा करनेके बावजूद ये लोग अस्पृश्य माने जाते हैं तो संभवतः किसी दिन हममें से कुछ लोग अस्पृश्यताके इस दोषसे मुक्त हो जायेंगे। जिस तरह स्त्रियाँ दूसरे धन्धेके अभाव में मजूरी करने जाती हैं उसी तरह पुरुष भी करते हैं। इससे जब उन्होंने देखा कि मैं उन्हें सूत देनेके लिए तैयार हूँ तब उन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा की कि यदि नियमपूर्वक रोज एक मन सूत मिल सके तो वे बुननेके धन्धेके अलावा कोई दूसरा धन्धा ही नहीं करेंगे। संवाददाता आगे कहता है कि बुनकरों द्वारा उपर्युक्त प्रतिज्ञा लेनेका मुख्य कारण उस अनीतिकी प्रतीति ही है जिसकी मैंने ऊपर चर्चा की है।

ऊपर जिस अनीतिकी बात कही गई है वह अपनी किस्मका अकेला उदाहरण नहीं है, यह बात तो आप अवश्य ही समझ गये होंगे। जब मैं उमरेठमें था तब मुझे बताया गया था कि बहुत-सी स्त्रियाँ दाल बीनकर अपनी आजीविकाके साधनोंमें वृद्धि करती हैं उन्हें व्यापारियोंके यहाँ दाल लेने और देने जाना पड़ता है और वहाँ अनेक प्रकारके उपहासास्पद वाक्यों तथा अपशब्दोंको सहना पड़ता है। मैं चार वर्षोंसे भारत यात्रा के दौरान अनेक स्थलोंपर ऐसी शिकायतें सुनता रहा हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है कि सौ वर्ष पूर्व जब हमारी माताएँ करोड़ोंकी संख्यामें सूत कातती थीं तब ऐसा नहीं होता होगा।

इसलिए मैं धनिक और शिक्षित बहनोंसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि यदि आप अपनी गरीब बहनोंके शीलकी रक्षा करना चाहती हैं तो हाथसे सूत कातने और कपड़े बुननेकी प्रवृत्तिमें आगे बढ़कर भाग लें। इस स्थलपर अन्य धन्धोंके बदले इसी धन्धेको प्रारम्भ करनेका क्यों आग्रह कर रहा हूँ, मैं इस सम्बन्धमें बहुत-सी दलीलें न देकर

  1. इसकी अंग्रेजी रिपोर्ट २७-९-१९१९ के यंग इंडियामें प्रकाशित हुई थी।