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वाइसरायका भाषण

अंश। दैनिक समाचारपत्रोंके प्रतिनिधियोंने इस भाषणके सम्बन्धमें तार देते हुए बताया है कि वाइसराय महोदयको अपना भाषण पढ़ने में पचपन मिनट लगे; उसमें वे टर्कीके सम्बन्ध में कदाचित् एक मिनट ही बोले। मैं स्वीकार करता हूँ कि भाषणकर्त्ता चाहे तो एक मिनटमें बहुत-कुछ अर्थात् बहुत महत्त्वपूर्ण बात कह सकता है। लेकिन वाइसराय महोदयके इस एक मिनटके भाषणमें मुझे निराशाके अतिरिक्त और कुछ नजर नहीं आता। वे कहते हैं, "मुसलमानोंकी भावनाओंको पूरी तरह पेश करनेके लिए मुझसे जो बन सका मैंने वह किया है। इस सरकारने साम्राज्य सरकारसे भारत के मुसलमानोंके विचारोंकी बड़े जोरदार ढंगसे सिफारिश की है, इतना ही नहीं बल्कि हमारे अपने प्रतिनिधियोंने भी शान्ति सम्मेलन [के सदस्यों] के सम्मुख इन विचारोंको पेश किया है। और फिर इस भयसे कि कहीं ऐसा न हो कि उनकी बातोंको पूरा महत्त्व न दिया जाये, उनके साथ इसी हेतु तीन प्रमुख मुसलमानोंको भी चुना गया था। भारतके मुसलमानोंको यह विश्वास चाहिए कि उनकी भावनाओंको अच्छी तरह पेश किया गया है।" माननीय वाइसराय महोदयने इस तरह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्नको उड़ा दिया है। उन्होंने मुसलमानोंकी भावनाओंको [यथास्थान] अच्छी तरह पहुँचानेकी व्यवस्था कर दी, इससे भला मुसलमानोंको क्या सन्तोष हो सकता है? इस प्रश्नके सम्बन्धमें मुसलमानोंकी ही नहीं बल्कि उनके सहोदर हिन्दू भाइयोंकी भावनाएँ भी बहुत तीव्र हैं। हमें उम्मीद है कि वाइसराय महोदयन यह बात भी बताई होगी। लेकिन उससे क्या लाभ? हम जानना तो यह चाहेंगे कि क्या ब्रिटिश राज्याधिकारियोंने भी इस प्रश्नको अपना माना है। उन्होंने मुसलमानोंकी सिफारिश की है, इतना भर कह देने से वे उस प्रश्न] से अलग नहीं रह सकते। इस प्रश्नपर जैसी मुसलमानोंकी भावनाएँ हैं वैसी ही उनकी भी हैं अथवा नहीं? और यदि उनकी भी वही हैं तो प्रश्न उठता है कि ऐसी स्थिति में वे शान्ति सम्मेलन में क्या रुख अपनानेवाले हैं। भूखसे पीड़ित व्यक्तिको अपना दुःख कहने का पूरा अवसर प्रदान करना जलेपर नमक छिड़कने के समान है। मुसलमान अपनी भावनाओंको प्रकट करनेके इरादेसे वकीलोंकी तलाश नहीं कर रहे हैं। वे अपनी भावनाओंकी अग्निको शान्त करनेके लिए जिस पानीकी तलाश में हैं, ब्रिटिश राज्याधिकारी वह देने को तैयार हैं या नहीं, वह मिलेगा कि नहीं वाइसराय महोदयने इस विकट प्रश्नका कोई उत्तर नहीं दिया। जनताका, नेताओंका तथा महाराजा बीकानेरका फर्ज है कि वे इस प्रश्नके स्पष्टीकरणकी माँग करें।

पंजाब

इस विषयपर बोलते हुए वाइसराय महोदयने लोगोंकी भावनाओंका कुछ भी खयाल नहीं किया है। रौलट अधिनियम पास करते समय जिस तरह लोगोंकी भावनाओंको कूड़े के समान बाहर फेंक दिया गया था, इस सम्बन्धमें भी वाइसराय महोदयने वैसा ही व्यवहार किया है। और [इस सम्बन्धमें] सिद्धान्तकी तरह उन्होंने जो विचार प्रस्तुत किया है, मुझे आशा है, जनता उसका अवश्य विरोध करेगी। वह सिद्धान्त यह है। वाइसराय महोदयने कहा, इस सभा के सदस्यगण स्वीकार