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वाइसरायका भाषण

महोदयका यह कहना कि आन्दोलनके फलस्वरूप ही ऐसी दुःखदायी घटनाएँ घटीं, सचमुच हैरानी में डालनेवाला है।

"शिक्षित और चतुर व्यक्ति"

मुझे यह भी कहना चाहिए कि वाइसराय महोदयने मेरे साथ अन्याय किया है। अहमदाबादमें घटी घटनाओंके सम्बन्धमें अप्रैल महीने में मैंने जो भाषण[१] दिया था उसमें यह कहा था कि यदि शिक्षित एवं होशियार व्यक्ति अथवा व्यक्तियोंका [उनमें] हाथ न होता तो अहमदाबादमें जो घटनाएँ घटीं वे न घटी होतीं। इस भाषणको पढ़नेवाला कोई भी व्यक्ति खुद देख सकेगा कि मेरे ये वाक्य [अहमदाबादके अलावा] अन्य किसी भी स्थानको दृष्टिमें रखकर नहीं कहे गये थे। मैं अपने इन शब्दोंपर अब भी कायम हूँ; लेकिन उन्हें अहमदाबाद से बाहर किसी और स्थानपर लागू करनेका वाइसराय महोदयको कतई अधिकार नहीं था। फिर भी उन्होंने मेरे इन शब्दों को पंजाब के सम्बन्ध में लागू किया। पंजाबकी स्थिति के बारेमें तो मुझे आज भी कोई निजी जानकारी नहीं है। मैंने वहाँसे प्राप्त कुछ मामलोंका अध्ययन किया है और उनसे तो मैं यही देख पाया हूँ कि चाहे कितने ही शिक्षित एवं चतुर व्यक्ति [जनताको] उकसाते तो भी सर माइकेल ओ'डायरने जाने अथवा अनजाने जो भारी भूलें कीं, यदि वे न की होतीं तो यह खून-खराबी कभी न हुई होती। छः अप्रैलको जब भारतके शहरों तथा छोटे-छोटे गाँवोंमें, चारों दिशाओंमें, लोगोंने उपवास किया और हड़ताल रखी उस समय ऐसा शान्त एवं भव्य दृश्य दिखाई दिया जो हमारे समयमें आजतक हममें से किसीने नहीं देखा था। उस दिन लाखों स्त्री-पुरुषोंने संसारके सामने यह सिद्ध कर दिखाया कि हम सब एक राष्ट्र हैं, एक दूसरेके दुःखके भागी हैं तथा एक ही भावनासे अनुप्रेरित हैं। तथापि उस दिनतक लोगोंने कोई भी निंद्य कार्य नहीं किया था। छः तारीखके इस प्रदर्शनसे पंजाबकी सरकारने होश खो दिये और सर माइकेल ओ'डायर अकारण ही लगातार एकके-बाद-एक भूलें करते चले गये। उससे लोग उत्तेजित हो गये और उन्होंने भी भूल की। आयोग इन घटनाओंको सत्याग्रहकी तराजूपर नहीं, बल्कि पश्चिममें ऐसी घटनाओंको तोलनेके लिए आजकल जो तराजू सामान्यतः सर्वमान्य है, उसपर तोलेगा और पंजाबके लोगोंने भूलकी अथवा नहीं इस बातका निर्णय होनेके बजाय इस बातका निर्णय होगा कि पहले भूल किसने की।

आयोग

इसका निर्णय करनेके लिए आयोग नियुक्त किया जा चुका है, वाइसराय महोदयने यह सूचना अपने भाषण के दौरान दी है। मैंने ऐसी आलोचना पढ़ी है कि यह शाही आयोग (रॉयल कमीशन) नहीं बल्कि समिति [मात्र] है, यह शोचनीय है तथा शाही आयोग नियुक्त न करके थोड़ा अन्याय किया गया है। मेरा खयाल है कि शाही आयोग तथा वाइसरायकी ओरसे नियुक्त की गई समितिमें विशेष अन्तर नहीं है।

  1. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २२८-३२