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वाइसरायका भाषण

इतना अधिक अन्याय किया गया है कि कोई अनपढ़ भी उसे देख और समझ सकता है। इस अन्यायके सम्बन्धमें समिति दूसरी और क्या राय प्रकट कर सकती है? मुझे स्वीकार करना चाहिए, समितिकी रिपोर्टके विषयमें मुझे तनिक भी भय नहीं, भय तो मुझे ठीक-ठीक गवाही देनेकी हमारी शक्तिके विषयमें ही है। लेकिन उससे मैं तो मुक्त हूँ और मेरी यह इच्छा है कि पाठक भी उससे मुक्त रहें। जहाँ पंडित मदनमोहन मालवीयजी, संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजी तथा पंडित मोतीलाल नेहरू-जैसे बहादुर व्यक्ति गवाहियाँ इकट्ठी करनेके कार्यमें जुटे हुए हैं वहाँ ऐसी आशंका करनेका कोई कारण ही नहीं है कि गवाहियाँ ठीक-ठीक नहीं दी जायेंगी। इसलिए, सचमुच देखा जाये तो समिति किस प्रकारकी है इसकी ओर ध्यान न देकर हमें इस बातपर ध्यान देना चाहिए कि समिति के सामने हम किस तरह पूरी-पूरी हकीकत पेश कर सकते हैं। समितिको सौंपे गये कार्योंमें पंजाबमें [अनेक मामलोंपर] दिये गये निर्णयों तथा सभाओंकी जाँच करनेका कार्य भी सम्मिलित है अथवा नहीं, इस बातका स्पष्टीकरण करनेका कार्य भी हमारा है। यद्यपि जान पड़ता है कि वाइसराय महोदय के शब्दों में यह बात आ जाती है फिर भी ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नके सम्बन्धमें शंकाका समाधान होना ही चाहिए। पाठकोंको याद होगा कि समिति सिर्फ पंजाबके लिए नहीं है, बल्कि उसकी जाँचके क्षेत्रमें बम्बई प्रदेशका भी समावेश हो जाता है। इस कारण हमें उसके लिए तैयार रहना होगा। मुझे तो यह लगता है, हमें अपना ध्यान मुख्यतया दो बातोंकी ओर देना चाहिए। एक तो समितिका अधिकार क्षेत्र क्या है - हमें इसका स्पष्टीकरण माँगना चाहिए तथा दूसरे उसके सामने अपना मामला रखने के सम्बन्धमें हमें पूरी तैयारी करनी चाहिए।

"इंडेम्निटी"

अब रहा "इंडेम्निटी", अर्थात् अधिकारियोंकी, उनके द्वारा किये गये कार्योंके सम्बन्धमें, दीवानी एवं फौजदारी दावोंसे मुक्ति। वाइसराय महोदयने बताया कि [विधान- परिषद्] वर्तमान अधिवेशनमें इस आशयका एक विधेयक पेश किया जानेवाला है। इसका कड़ा विरोध किया जा रहा है। कुछ सार्वजनिक संस्थाओंकी ओरसे वाइसरायको इस आशय के तार भी भेजे गये हैं कि जबतक समितिकी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हो जाती तबतक यह विधेयक पेश नहीं किया जाना चाहिए। इस तरहके कानूनका मैं जो मतलब लगाता हूँ उसे मैं पाठकोंके सामने रखना चाहता हूँ । [मतलब यह है कि] मार्शल लॉकी रूसे अधिकारियोंने जो कार्य किया उसके लिए वे व्यक्तिगतरूपसे जिम्मेदार नहीं ठहराये जा सकते। मार्शल लॉके बिना, अधिकारी लोग सामान्य कानूनकी रूसे जो आदेश आदि देते हैं, फिर चाहे वह आदेश गलत अथवा पक्षपातपूर्ण या द्वेषसे दिया गया साबित हो, तो भी उसके लिए उनपर दीवानी अथवा फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यदि सरकार चाहे तो वह उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई कर सकती है, उन्हें नौकरीसे अलग कर सकती है लेकिन उनसे अदालत में जवाब-तलब नहीं किया जा सकता। मार्शल लॉके अधीन जो कार्य किये जाते हैं सरकार उनका बचाव हमेशा ही विशेष कानून बनाकर करती है तथा सिद्धान्त रूपमें

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