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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सब लोग इसे स्वीकार करते हैं। इसीसे मैं कहता हूँ, यदि सरकार अभी इसी समय क्षतिपूर्ति - (इंडेम्निटी) विधेयक पास करना चाहे तो हमें भयभीत होनेकी आवश्यकता नहीं है। हमें यह विधेयक, यदि इसके खण्ड आपत्तिजनक न हों, तो पास हो जाने देना चाहिए। जिन अधिकारियोंने गोली चलाये जानेके अनुचित आदेश दिये अथवा जिन न्यायाधीशोंने फाँसी देनेके गलत हुक्म दिये, हम उन अधिकारियों या न्यायाधीशोंको फाँसी के तख्तेपर लटकाना नहीं चाहते। अगर चाहें भी तो हमें वैसी सत्ता मिलनेवाली नहीं हैं। वे तो ऐसी सजासे मुक्त ही रहेंगे। प्रत्येक राज्यको ऐसे संरक्षणकी आवश्यकता होती है। जिस समय हमें स्वराज्य मिल जायेगा तब भी [राज्य के पास] ऐसी सत्ता तो रहेगी ही। अधिकारी उस समय भी गम्भीर भूलें करेंगे और लोग भड़केंगे और यदि उस वक्त सत्याग्रह देशव्यापी नहीं हुआ होगा तो खून-खराबी होगी, मार्शल लॉ लगाया जायेगा, गोलियाँ चलेंगी, बादमें आयोग नियुक्त किया जायेगा और स्वराज्य में भी अधिकारियोंकी रक्षा करनेकी खातिर उनकी मुक्तिके विधेयक पास किये जायेंगे। लेकिन उस समय भी आजकी तरह यह देखा जायेगा कि विधेयकमें कौन-कौनसे खण्ड हैं। इसलिए इस विधेयकके सम्बन्धमें, मैं तो यही कहूँगा कि हमें इस विधेयकके समय से पहले पेश किये जानेके सम्बन्धमें शिकायत करनेके बदले इस बातपर पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए कि उसमें क्या-क्या कहा जा रहा है। उदाहरणस्वरूप यदि विधेयक में यह व्यवस्था हो कि जिस व्यक्तिने गोली चलाये जानेका आदेश दिया, उसपर खूनका दोषारोपण अथवा हानिका दावा नहीं किया जा सकता तो हम उसपर कोई आपत्ति नहीं करेंगे। लेकिन अगर विधेयकमें ऐसी कोई व्यवस्था की गई हो कि उसके विरुद्ध विभागीय जाँच नहीं की जा सकती अथवा उसे उसके अनुचित व्यवहार या उसकी अयोग्यताके कारण नौकरीसे अलग नहीं किया जा सकता तो हम उसका डटकर विरोध करेंगे। उचित अथवा अनुचित जो भी सजा या आदेश दिये गये हों वे कायम रहेंगे और उनमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता - यदि विधेयकमें इस आशयका कोई खण्ड दिया गया हो तो हमें उसका भी विरोध करना चाहिए। यह तो मैंने केवल उदाहरण दिये हैं। गरज यह कि मेरी विनम्र राय में, हमें विधेयककी अनुचित व्यवस्थाओंका ही विरोध करना चाहिए।

दक्षिण आफ्रिका

इस सम्बन्धमें वाइसराय महोदयने जो कहा वह असन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। हमारे मामलेको पेश करने के लिए सर बेंजामिन रॉबर्टसनको भेजनेका जो निश्चय किया गया है हम उसका स्वागत करते हैं। उनके जानेका दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंपर गहरा असर हुए बिना नहीं रहेगा। दक्षिण आफ्रिकासे प्राप्त हुए तारोंसे पता चलता है कि गोरे व्यापारी अभी भी गड़बड़ करते रहते हैं और शिकायत करते रहते हैं कि जो नये कानून पास किये गये हैं उनपर ठीक-ठीक अमल नहीं किया जाता। इसलिए भारत सरकारकी ओरसे यदि वहाँ एक प्रतिनिधि हो तो इस तरहकी समस्याओं में वह उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इस सम्बन्धमें दिये गये माननीय वाइसराय महोदय के भाषणका में यह अर्थ करता हूँ कि श्री मॉण्टेग्यु द्वारा सुझाये गये प्रति- Gandhi Heritage Porta