निधियोंको, दक्षिण आफ्रिकामें नियुक्त किये जानेवाले आयोगमें अवश्य रखा जायेगा। ये प्रतिनिधि दृढ़ एवं स्वतन्त्र विचारोंवाले व्यक्ति होंगे तो मुझे इसमें सन्देहन हीं कि ये बहुत अच्छा काम कर सकेंगे एवं हमारे भाइयोंपर होनेवाला अन्याय बहुत कम हो जायेगा।
फीजी
फीजीके सम्बन्ध में वाइसरायने जो घोषणा की है उसे सर्वथा सन्तोषप्रद कहा जा सकता है और हम आशा रख सकते हैं कि इस वर्षके समाप्त होनेसे पूर्व हमारी बहनोंपर होनेवाला अत्याचार बन्द हो जायेगा तथा वे गिरमिटिया बन्धनसे मुक्त हो जायेंगी। किसीको यह न मान लेना चाहिए कि गिरमिट प्रथाके बन्द हो जानेपर भी, लोगों में जो अनैतिकता घर कर गई है, वह एकाएक बन्द हो जायेगी। गिरमिट रद होनेसे सरकार और प्रजापर उत्तरोत्तर जो पाप बढ़ता जा रहा था उसका परिमार्जन हो जायेगा तथा राजा और प्रजा दोनों मुक्त हो जायेंगे। बीती घटनाओंके लिए तो हमें निःसन्देह हमेशा लज्जा आयेगी।
- [गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-९-१९१९
८७. एक संवाद[१]
कुछ दिन पूर्व हुए एक संवादको हम ज्योंका-त्यों नीचे दे रहे हैं। पाठकोंको इसमें रस आये, इसलिए कुछ वाक्योंको तोड़ दिया गया है तथा हिन्ददेवीका अपेक्षाकृत अधिक विशद रूपमें चित्रण किया गया है। किन्तु बाकी प्रश्नोत्तर ज्योंके-त्यों दे दिये गये हैं। पात्रोंके नाम जान-बूझकर नहीं दिये गये हैं।
- अ : जय सच्चिदानन्द! मुझे पहचाना क्या?
ब : उस समय तुमने ये भगवे वस्त्र धारण नहीं किये थे।
अ : हाँ पिताजी, [ये वस्त्र] मुझे एक महात्माने पहनाये और मैंने पहने।
ब : तुमने कुछ विचारतक नहीं किया?
अ : महात्माके प्रति मेरी श्रद्धा थी। मैं धर्म के सम्बन्धमें थोड़ा-थोड़ा चिन्तन किया करता था, इसलिए मुझे लगा कि महात्मा जो कहते हैं उसपर अमल किया जा सकता है।
ब : तुम्हें भगवे वस्त्र पहने देखकर लोग तुम्हारी पूजा करते हैं क्या?
अ : हाँ पिताजी, आदर तो करते हैं।
ब : तुम पूजाके योग्य हो क्या?
अ : जी नहीं, ऐसा तो कैसे कहा जा सकता है? मैं राग-द्वेषसे भरा हुआ हूँ।
ब : तुम तो भिक्षा भी माँगते हो?
- ↑ यद्यपि "पत्र : महादेव देसाईको", १५-९-१९१९ से इस लेखका गांधीजी द्वारा लिखा जाना कुछ-कुछ संदिग्ध प्रतीत होता है, परन्तु इसे गांधीजीनु नवजीवनमें (७-९-१९१९ से १२-३-१९२२ तक) गांधीजीका मानकर संग्रहीत किया गया है।