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लाभसिंह

हैं: "में नहीं समझता कि पंजाबसे बाहरके लोग दंगे-फसादके दिनोंमें भी परिस्थितिकी गम्भीरताको पूरी तरह महसूस कर पाये थे।" आगे वे कहते हैं:

यदि दंगे-फसादपर इतनी तेजीसे काबू न किया गया होता, यदि उनको उस सीमासे थोड़ा ही और आगे बढ़ने दिया जाता, तो सभी तबकोंके लोगोंके जान-मालको एक भारी खतरा खड़ा हो जाता।

यह तो कोई उत्तर न हुआ। यह तो जिस चीजकी जाँच होनी है उसे पहलेसे ही मान लेना और जाँच समितिके निर्णयका पूर्वानुमान लगाना है। सजाओंके बारेमें भी सर एडवर्डने इसी तरह यह कहकर एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि विशेष न्यायालयोंके निष्कर्षोको स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि "हर मामलेमें वे तीन अनुभवी अधिकारियोंके सर्वसम्मत निष्कर्ष हैं।" परन्तु जब ये निष्कर्ष ऐसी बुद्धिकी उपज हों जो कुछ समय के लिए पथ-भ्रष्ट हो गयी थी तो सर्वसम्मति और अनुभवकी कोई सार्थकता नहीं रह जाती। फिर भी वे अपने आलोचकोंको यह कहकर चुप करानेका प्रयत्न करते हैं:

हालांकि मैंने कई मामलोंकी जाँच की है, लेकिन मुझे उनमें एक भी ऐसा नहीं मिला जिसमें न्यायालय द्वारा निकाले निष्कर्षपर अँगुली उठानेका कोई भी औचित्य दिखा हो।

इस दो-टूक रायके बाद तो मुझे इस समय पंजाबकी जेलोंकी शोभा बढ़ानेवाले श्री लाभसिंह या पंजाबके अन्य बड़े-बड़े नेताओंके लिये न्याय हासिल करने या उसकी आशा करने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। फिर भी पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर के प्रति उचित आदरभाव रखते हुए मैं यह कहने का लोभ संवरण नहीं कर सकता कि यदि जनताके सामने आये अनेक मुकदमोंमें एक भी उनको ऐसा नहीं मिला जिसके बारेमें विशेष न्यायालयों द्वारा निकाले गये निष्कर्षोपर अँगुली उठाई जा सके, तो मैंने भी विशेष न्यायालयोंके ऐसे कई निर्णय देखे हैं जिनके औचित्यपर मेरा विश्वास नहीं जमता। श्री लाभसिंहके ही मुकदमेका उदाहरण देकर मैं अपनी बात साफ करता हूँ। श्री लाभसिंह कोई बिलकुल ही मामूली, बेसहारा आदमी नहीं हैं। उनके मुकदमेमें न्यायाधीशके निर्णयका पूरा पाठ इस प्रकार है:

चौथे अभियुक्त, लाभसिंहने रौलट अधिनियम के विरुद्ध प्रचार आन्दोलनको शुरू करनेमें सक्रिय भाग लिया और वह १२ और १३ तारीखकी सभाओं में उपस्थित था। कहा जाता है कि उसने १३ तारीखको पहले तो हिंसात्मक कार्रवाईका विरोध किया, परन्तु अन्तमें उससे सहमत हो गया। १४ तारीखको उसे कई स्थानोंमें जनताकी भीड़के साथ देखा गया था, परन्तु लगता है कि उस दिन उसने अधिकारियोंकी सहायता की थी। हम उसे भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १२१ के अन्तर्गत दोषी पाते हैं।

पाठक इस निर्णयका पूरा पाठ ३० जुलाईके 'यंग इंडिया' में देख सकते हैं। मैं पूछता हूँ कि न्यायाधीशोंने भी श्री लाभसिंहके बारेमें यह जो कहा है उसमें उनकी