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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छाईके अलावा और है क्या, सिवाय इस एक वाक्यके कि "वह अन्तमें उससे सहमत हो गया था?" न्यायाधीशने जो कुछ भी कहा है उसमें ऐसी कोई चीज नहीं है जो श्री लाभसिंहको १२ अप्रैलसे पहलेकी किसी कार्रवाईके लिए दोषी ठहराये। सजाका पूरा आधार ही मुखबिरका बयान है जिसका समर्थन करनेवाला कोई सबूत नहीं है, जबकि इस बातका पक्का सबूत मौजूद है कि उन्होंने हिंसापूर्ण कार्योंसे तथाकथित सहमति प्रकट करनेके बाद भी "अधिकारियोंकी सहायता करनेकी कोशिश की थी" (मैं न्यायाधीशके ही शब्द उद्धृत कर रहा हूँ)। परन्तु मुखबिरके बयानको सबूत मान लेनेके कारण ही न्यायालयने निर्णय के अन्तमें कहा है: "लाभसिंहने स्पष्ट ही अपने कियेपर पश्चात्ताप किया था। पाठकोंको याद रखना चाहिए कि यह वही निर्णय है। जिसमें घटनास्थलपर जगन्नाथकी अनुपस्थिति स्पष्टतः सिद्ध हो जानेपर भी उस बेचारेको कमिश्नर द्वारा घुमाई गई प्रश्नावलिके उत्तर मिलने से पहले ही सजा सुना दी गई थी। तब लाभसिंहके निम्नकथन में कुछ भी विचित्रता नहीं है:

विनम्र निवेदन है कि लेफ्टिनेन्ट गवर्नरका आदेश एक भारी और गम्भीर अन्यायकी परिपुष्टि ही करता है और उसे स्थायित्व प्रदान करता है।

यह स्वीकार किया गया है कि श्री लाभसिंहने ५ अप्रैलके नोटिसपर हस्ताक्षर करनेके अलावा और कुछ नहीं किया; उन्होंने १४ अप्रैलकी घटनासे पहले गत १२ से १५ महीनोंके बीच गुजरांवालामें या अन्य किसी भी स्थानपर किसी भी समय न तो कोई सभा बुलाई और न किसी सार्वजनिक सभामें भाषण ही किया था। श्री लाभसिंह आगे कहते हैं:

न्यायालयाने निर्णय करनेमें असामान्य जल्दबाजी की और सफाई पक्षके चन्द गवाहोंके नाम जारी की गई प्रश्नावलियोंके उत्तर आनेतक रुकना भी गवारा नहीं किया।

मैं श्री लाभसिंहके अत्यन्त ही योग्य और विश्वासोत्पादक बयानों और उनके दो प्रार्थनापत्रोंसे और अधिक उद्धरण देकर इस टिप्पणीको बोझिल नहीं बनाना चाहता, परन्तु मैं प्रत्येक भारतप्रेमी और प्रत्येक सार्वजनिक कार्यकर्त्तासे अनुरोध करता हूँ कि वे मुकदमे के निर्णयको इन दस्तावेजोंके साथ रखकर सावधानी और बारीकीसे पढ़ें। मेरा ख्याल है कि श्री लाभसिंह और उनके साथी बन्दियोंके प्रति हमारा भी एक सीधा-सादा कर्त्तव्य है। सर एडवर्ड मैकलेगनके अनुसार वे स्पष्ट ही अपराधी हैं। जनताके सामने जो सबूत है उसके मुताबिक वे सब स्पष्ट ही निर्दोष हैं। हमें इतने प्रतिभाशाली, सुयोग्य और नीतिवान युवकोंका पूरा जीवन, उनके प्रति उदासीन रहकर, बर्बाद नहीं होने देना चाहिए। भावी पीढ़ियाँ हमें इसी बातसे परखेंगी कि मैंने जिन मामलोंकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित किया है उनमें और उन जैसे दूसरे मामलोंमें हम उनके लिए कहाँतक न्याय हासिल कर सके। मेरे लिए तो व्यक्तिके प्रति न्याय हासिल करना ही सबसे बड़ा कर्त्तव्य है, वह व्यक्ति चाहे कितना ही मामूली क्यों न हो। अन्य सभी बातोंका नम्बर इसके बाद आता है। और आशा है कि जनता भी इसे इसी दृष्टिसे देखेगी। यदि ये सजाएँ रद्द नहीं हुई तो उसका कारण