पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

९४. भाषण : बम्बईकी खिलाफत सभामें[१]

सितम्बर १८, १९१९

मुझे इस सभा में उपस्थित होनेकी बड़ी प्रसन्नता है, और इसमें आमंत्रित करनेके लिए में आपका आभारी हूँ। आज शामकी यह सभा जिस प्रश्नपर चर्चा करनेके लिए बुलाई गई है वह मेरे लिए नया नहीं है। भारत पहुँचनेके बादसे ही में सभी विचारोंके मुसलमानोंसे मिलता-जुलता रहा हूँ और जानता हूँ कि आपके लिए यही प्रश्न सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके सही हलपर ही इस देशकी भावी शान्तिका दारमदार है। इसलिए इसका प्रभाव केवल मुसलमानोंपर ही नहीं हिन्दुओं और अन्य सम्प्रदायोंपर भी पड़ता है। यह प्रश्न समूचे साम्राज्य के लिए बड़ा महत्त्व रखता है। इसके लिए मुझे यह देखकर दुःख हुआ कि महामहिम वाइसरायने विधान परिषद्के समक्ष अपने पचपन मिनटके भाषणमें इस प्रश्नको केवल एक ही मिनट दिया। अधिक उपयोगी और उचित तो यही होता कि वे इसी प्रश्नकी चर्चाके लिए चौवन मिनट देते। मैंने वाइसराय महोदयको पूरे सम्मानके साथ सार्वजनिक रूपसे इस प्रश्नकी गम्भीरताके बारेमें आगाह कर दिया है। इस्लामके लिए जो भी कुछ परम पवित्र है, वह सब इस प्रश्नके साथ जुड़ा हुआ है। मैं आपकी भावनाओंको बखूबी समझ सकता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि यदि हिन्दुओंके धार्मिक सम्मानपर कोई आँच आये तो वे कैसा महसूस करेंगे। मैं जानता हूँ कि आज आपके लिए खिलाफतका प्रश्न ही सबकुछ है। इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि आपके इस न्यायपूर्ण संघर्षमें सभी हिन्दू आपके साथ हैं। मैंने अपने हालके एक लेखमें[२] वाइसराय महोदयसे कहा है कि आपका मामला पेश कर देना, और शान्ति सम्मेलन में आपको प्रतिनिधित्व दिला देना ही उनके लिए पर्याप्त नहीं है। अच्छा अवश्य है, पर पर्याप्त नहीं। उनको आपकी भावनाओंको आपकी तरह ही महसूस करना चाहिए। उनको आपके उद्देश्यको अपना उद्देश्य बना लेना होगा। मैं सम्मानपूर्वक सुझाव रखता हूँ कि यदि वाइसराय महोदय और श्री मॉण्टेग्यु दोनों ही आपकी भावनाओंको ठीकसे समझते हैं, तो वे सम्राट्से कह दें कि यदि इस बड़े प्रश्नको इस ढंगसे हल नहीं किया जाता कि आपको पूर्णतया संतोष हो जाये तो उनको पदके दायित्व से मुक्त कर दिया जाये। सम्राट्के मंत्रियोंपर मुसलमानोंके एक बहुत महत्त्वपूर्ण हितका प्रतिनिधित्व करनेके नाते, इस मामलेका समुचित हल निकलवानेका दायित्व है। मुसलमानोंकी भावनाओंकी उपेक्षा करना उनके इस दायित्वसे मेल नहीं खाता। लेकिन में अपने मनकी बात बताऊँ तो कर्तव्यकी उपेक्षाका खतरा मुझे मंत्रियोंकी ओरसे इतना नहीं है जितना कि आपकी - इस सभामें उपस्थित

  1. गांधीजीने मुसलमानोंकी एक सभामें टर्कीको अलग-अलग टुकड़ों में बाँटनेके खतरेके बारेमें एक प्रस्तावपर भाषण किया था। मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानी सभाके अध्यक्ष थे।
  2. देखिए "वाइसरायका भाषण", १४-९-१९१९