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दण्डविमुक्ति विधेयक

लोभके दायरे से बाहर निकलकर पहली बार संसदमें बैठेंगे तब यह भी हो सकता है कि वे भी ऐसा कोई प्रस्ताव पास करें जिससे मुझे जबरदस्त धक्का लगे। मैं उसके लिए भी बिलकुल तैयार हूँ। चूंकि मेरा यही दृष्टिकोण है, इसलिए मैं इस वर्तमान विधान द्वारा एक दण्डविमुक्ति विधेयक पास करनेके तथ्यपर भी एक संतुलित भावसे विचार कर सकता हूँ, जिसमें जनताका प्रतिनिधित्व और नियन्त्रण नाममात्रको ही है। और यदि इस प्रश्नपर व्यावहारिक दृष्टिसे विचार किया जाये तो मेरा खयाल है कि दण्डविमुक्ति विधेयकको शाही संसदसे पास कराना और भारत में एक पूर्व-दृष्टान्त तैयार कर देना हमारे लिए एक बड़ा मुश्किल काम होगा।

मैं अत्यन्त आदरपूर्वक इस मतसे भी अपना मतभेद व्यक्त करना चाहता हूँ कि एक ऐसा विधेयक शाही आयोग द्वारा प्रतिवेदित किये जानेके पश्चात् ही पास किया जा सकता है। मैं यह कहने की धृष्टता करता हूँ कि विधेयक जिस रूप में प्रकाशित हुआ है, उस रूपमें लगभग हानिरहित ही है और यह एक ऐसा विधेयक है जिसे हमें आयोग के प्रतिवेदन के बाद भी इसी रूपमें पास कर देना चाहिए। मुझे क्षणभरके लिए भी यह भ्रम नहीं है कि अमानवीय ढंगसे कोड़े लगानेका आदेश देनेवाले अधिकारीने इस सदाशयतापूर्ण विश्वासके साथ वैसा आदेश दिया होगा कि वह साम्राज्यकी सेवा कर रहा है। मैं यह नहीं चाहूँगा कि हम व्यक्तिगत रूपसे उस अधिकारीके विरुद्ध क्षतिपूत्तिका दावा करें। यदि मेरे हाथमें सत्ता होती, तो मैं अक्षमता के आधारपर उस अधिकारीको बरखास्त करा देता और ऐसा कर सकनेके प्रशासकीय अधिकारपर इस विधेयकसे कोई आंच नहीं आती। आखिरकार, हम यह तो नहीं चाहते कि किसी से बदला लें या छोटे अधिकारियों को उच्च अधिकारियोंके अपराधके लिए बलिका बकरा बनायें। आम जनताका विश्वास और मत यही है कि वास्तविक अपराधी तो पंजाब सरकार और भारत सरकार है। मेरी समझसे तो इस विधेयकसे उनको कोई निष्कृति नहीं मिलती। वाइसराय और सर माइकेल ओ'डायर अपने-अपने सचिवोंसे तो सदाशयताके प्रमाणपत्र नहीं ले सकते। उनको तो असाधारण शक्तियाँ ग्रहण करनेके अभियोगके उत्तर में समुचित और पर्याप्त कारण जुटाकर उसकी आवश्यकता सिद्ध करनी ही पड़ेगी। अन्तमें, मेरा विनम्र मत है कि हमें छोटे अधिकारियोंको दण्डविमुक्त करनेका विरोध करते देखकर हमारे अंग्रेज मित्र निरर्थक ही रुष्ट हो जायेंगे। पंजाबके गवर्नर और वाइसरायके खिलाफ हमारे संघर्षको तो अंग्रेज मित्र भी अनुचित नहीं समझेंगे। परन्तु छोटे अधिकारियोंको कानूनी कार्रवाईसे दण्डविमुक्त करनेमें हमें विलम्ब करते देखकर भी वे हमारे बारेमें कोई अच्छी राय नहीं बनायेंगे।

और हमें अभी कई बड़े संघर्ष करने हैं। इसलिए मैं तो कहूँगा कि हमें अपनी सारी शक्ति, अपनी पूरी सामर्थ्यं नितान्त आवश्यक और अवश्यम्भावी संघर्षके लिए सुरक्षित रखनी चाहिए। हमें इसके शिकार बननेवाले लाला हरकिशनलालसे लेकर युवक करमचन्द जैसे निर्दोष, निरपराध व्यक्तियोंके सम्मानकी रक्षा एक पवित्र धरोहरकी भाँति करनी चाहिए। हो सकता है कि प्रीवी कौंसिल कुछ प्राविधिक आधारोंपर इन विचाराधीन अपीलोंको रद कर दे। और यह भी सम्भव है कि सभी लोग अपीलें न भी कर पायें। और हो सकता है कि सरकार भी हठधर्मी करे और केवल