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टिप्पणियाँ

इसके तीन तरीके हैं :

(१) खर्च पूरा करने में योग देना।
(२) जैसे-जैसे तथ्य हमें मिलते जाएँ उनका अध्ययन और प्रकाशन करना।

(३) हर सड़क और चौराहेपर सभाएँ करके अप्रैल और उसके बादकी घटनाओंकी खुली और निष्पक्ष जाँचकी मांगके प्रस्ताव पास करना।

मुझे प्रतीत होता है कि लॉर्ड हंटरकी समिति अलग-अलग मामलोंकी जाँच नहीं करेगी और जाँच के लिए दो न्यायाधीश ही नियुक्त किये जायेंगे। हमें कोशिश करनी चाहिए कि न्यायाधीश ऐसे हों जिनपर हम भरोसा कर सकते हों और जिन्हें नया साक्ष्य मंजूर करने के अधिकारके साथ पर्याप्त शक्ति मिली हुई हो। और हमें माँग करनी चाहिए कि दोनों जाँचका कार्य उचित ढंगसे सम्पन्न करानेकी दृष्टिसे राजनीतिक बन्दियोंको रिहा कर दिया जाये, आवश्यक हो तो भले ही उन्हें पैरोलपर छोड़ा जाये। मेरी विनम्र राय है कि जिस एक अधिनियमको बरकरार रखनेके लिए, जैसा कि मेरा विश्वास है, न्यायको धता बतला दी गई है, उसके रद हुए और आवश्यक राहत मिले बिना सभी प्रकारके सुधार व्यर्थ सिद्ध होंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

न्यू इंडिया, २६-९-१९१९

९८. टिप्पणियाँ

राष्ट्रीय शिक्षा

भारतवर्ष के प्राचीन विद्यापीठोंके सम्बन्धमें लिखे गये लेखकी[१] ओर हम पाठकोंका ध्यान खींचते हैं। जबतक देशमें सच्चरित्र शिक्षकोंकी मार्फत विद्यादान नहीं होता, और ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती कि गरीब से गरीब भारतीयको अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जा सके, जबतक विद्या और धर्मका सम्पूर्ण समन्वय नहीं हो पाता, जबतक [शिक्षा] भारतकी परिस्थितिके अनुरूप नहीं दी जाती, जबतक बालकों और युवकोंके मनपर विदेशी भाषाकी मार्फत शिक्षा देकर जो असह्य बोझ डाला जाता है उसे दूर नहीं किया जाता, तबतक राष्ट्रीय जीवनका विकास नहीं हो सकता। यह एक ऐसा सत्य है जिसमें शककी कोई गुंजाइश ही नहीं है।

शुद्ध राष्ट्रीय शिक्षा तो प्रत्येक प्रान्तकी अपनी भाषाके माध्यमसे ही दी जानी चाहिए। शिक्षक उच्च कोटिके होने चाहिए। पाठशाला ऐसी जगह होनी चाहिए जहाँ

१६-११

  1. श्री मावजी दामजी शाह द्वारा मूल मराठीसे अनूदित यह लेख २१-९-१९१९ के नवजीवनमें प्रकाशित हुआ था।