विद्यार्थियों को स्वच्छ हवा और पानी प्राप्त हों, शान्ति मिले और जहाँ मकान तथा आसपासकी भूमि आरोग्यका पदार्थपाठ पढ़ाती हो; और शिक्षण पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे भारतके मुख्य धन्धों तथा मुख्य धर्मोका ज्ञान प्राप्त हो सके। एक मित्रने ऐसी पाठशालाका पूरा खर्च उठानेका अपना इरादा जाहिर किया है। उनका उद्देश्य यह है कि इस पाठशाला में अहमदाबादके बालकोंको प्राथमिक शिक्षा मुफ्त दी जाये। मित्रकी इच्छा है कि ऐसी पाठशालाएँ अहमदाबादमें एक नहीं अनेक होनी चाहिए। अहमदाबादके समीप जमीन मिल सकती है और भवन-निर्माण भी किया जा सकता है, ऐसा हम मानते हैं। लेकिन हमारा अनुभव है कि उच्च शिक्षा प्राप्त चारित्र्यवान शिक्षक पाने में कठिनाईका सामना करना पड़ता है। हम गुजरातके शिक्षित वर्गको सूचित करना चाहते हैं कि वे इस ओर अपना ध्यान दें। [इस दिशा में] महाराष्ट्रमें शिक्षित वर्ग जितना त्याग करता है गुजरातका शिक्षित वर्ग उसका एक चौथाई भी नहीं करता। हमारे मित्रकी योजनामें ऐसा तो कहीं नहीं है कि वेतन बिलकुल न दिया जाये। उसमें शिक्षकोंके लिए अपनी आजीविका प्राप्त कर सकनेका प्रबन्ध किया गया है लेकिन जो शिक्षक अपनी कमाईकी सीमा नहीं बाँध सकता वह ऐसी पाठशालामें घुलमिल नहीं सकता। गुजरातके शिक्षित समुदाय में से यदि कोई व्यक्ति ऐसी शिक्षा देने में अपना समय देना चाहता हो तो उसे राष्ट्रीय शिक्षा-विभागके मन्त्रीके नाम पत्र लिखना चाहिए। और यदि योग्य शिक्षक मिले तो हम अहमदाबादमें थोड़े समयमें ही ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा देनेवाली पाठशाला स्थापित हुई देखेंगे। इस शालाके विद्यार्थी अपने-अपने घर रहेंगे। केवल पढ़ाईके समय पाठशाला में आयेंगे। वैसा ही शिक्षकोंके विषयमें समझना चाहिए। सत्याग्रह आश्रमके अंगरूपमें चलनेवाली राष्ट्रीय पाठशालाका हमारे मित्रोंकी योजनासे इस बात के अलावा और कोई सम्बन्ध नहीं होगा कि दोनों शालाओं में एक ही शिक्षण पद्धति होगी। सत्याग्रह आश्रमकी पाठशालाका एक उद्देश्य उसमें पढ़नेवाले बालकोंपर सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त करके उनमें से शिक्षक तैयार करना है। जिस पाठशालाके बारेमें अभी विचार किया जा रहा है उसका हेतु अहमदाबाद के बालकोंको प्राथमिक शिक्षा देनेतक ही सीमित है।
व्यापारियोंका अपने नौकरोंके प्रति कर्त्तव्य
'सर्वोदय' उपनाम से लिखनेवाले पत्र लेखकके पत्रकी ओर हम व्यापारियोंका ध्यान आकर्षित करते हैं। यह पत्र लिखनेवाले महोदय स्वयं बम्बईके एक सम्मानित व्यापारी हैं। हमने बम्बईके नौकरोंकी दुःखभरी गुहार अनेक बार सुनी है। उनसे बहुत सवेरेसे लेकर रातके दस-दस बजे तक काम लिया जाता है। फलतः न तो वे पूजा-पाठ कर सकते हैं, न अपने शरीरकी सार-सँभाल कर सकते हैं और न अध्ययनके लिए ही समय बचा पाते हैं। जिस देशमें जनताके सेवक वर्गकी ऐसी दयनीय स्थिति हो उस देशका राष्ट्रीय जीवन दोषपूर्ण माना जायेगा। व्यापारियों और नौकरोंके आपसी सम्बन्ध पिता-पुत्रके समान पारस्परिक सद्भाव तथा वफादारीपर आधारित होने चाहिए। सेठके प्रति नौकरकी इस वफादारी और सद्भावका परिणाम यह होना चाहिए कि वह जरूरत पड़ने पर अपने सेठके लिए प्राण न्यौछावर कर दे और हमेशा सेठके प्रति