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टिप्पणियाँ

ईमानदार रहे। सेठकी वफादारी काम लेते समय नौकरपर दयाभाव रखने, उसके स्वास्थ्य की रक्षा करने तथा उसकी आर्थिक स्थिति सुधारनेमें है। जहाँ परस्पर एक-दूसरेके प्रति ऐसी कर्त्तव्यभावना हो वहाँ बहुत सुन्दर परिणाम देखने में आते हैं। यह एक ऐसी बात है जिसमें हम अंग्रेजों की नकल कर सकते हैं। [उनमें] सामान्यतया नौकरोंके लिए काम करनेका एक निश्चित समय ही होता है, और वह इतना कम होता है कि जिससे नौकरके पास गृहकार्य, व्यायाम और अगर वह धार्मिक वृत्तिका व्यक्ति हो तो पूजा-पाठके लिए काफी समय बच जाता है। जितना काम अंग्रेज व्यापारी अपने नौकरोंसे आठ घंटे में ले लेता है उतना काम हमारे व्यापारी अपने नौकरोंसे कई बार सोलह घंटों में भी नहीं ले पाते।

हम सेठोंके सम्मुख उनके स्वार्थकी ही बात प्रस्तुत करना चाहते हैं। नौकरोंसे दस-बारह अथवा चौदह घंटेतक काम लेनेमें उन्हें भी रुके रहना पड़ता है। हम कोई सारा दिन अपने व्यापारका ही विचार करनेके लिए पैदा नहीं हुए हैं। व्यापार एक साधन है। जब वह साध्यके रूपमें हमारे ऊपर हावी हो जाता है, तब हम गुलाम बन जाते हैं। व्यापारीका यह फर्ज है कि वह समय रहते इस दशासे छुटकारा पा ले।

श्री नानालाल कवि अपने अमूल्य लेखों[१] द्वारा जिस समस्याको सुलझानेका प्रयत्न कर रहे हैं उसका इस विषयके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। उनके वक्तव्यका इतना आशय तो हम समझ गये हैं कि जहाँ राष्ट्रीय जीवनमें निर्दोष आनन्द प्राप्त करनेका समय नहीं है अथवा उसे प्राप्त करनेके साधन नहीं हैं वहाँ जनता निस्तेज हो जाती है। जैसे मनुष्यके लिए सोना आवश्यक है वैसे ही उसके लिये व्यापारादि चिन्ताओंसे मुक्त होकर घड़ी भरके लिए बालकके समान विनोद करने तथा निश्चिन्त होनेकी भी आवश्यकता है। वैसा हो तो राष्ट्रको नित्य नया जीवन मिलेगा। तथा जैसे हररोज अरुणोदय होनेपर भी वह सदा नवीन ही लगता है वैसे ही जिस राष्ट्रके लोगोंको निर्दोष आनन्द प्राप्त करने के साधन और समय दोनों मिलते हैं वह राष्ट्र निस्तेज और मुरझाया हुआ दिखनेके बजाय सदैव दीप्त एवं प्रफुल्लित दिखेगा। व्यापारियोंके सम्मुख हम अपना यह विचार सप्रेम प्रस्तुत करते हैं और उनसे इसपर विचार करनेका अनुरोध करते हैं तथा 'सर्वोदय' के सुझावोंपर, जैसे बने अमल करने की सलाह देते हैं।

क्षणिक और स्थायी

सारी दुनिया में लोग दो तरह के कार्योंमें रत हैं। एक क्षणिक है और क्षणिक सुखके लिए ही होता है। समझदार लोग उसका त्याग करते हैं अथवा उसके लिए अल्प प्रयास करते हैं। दूसरे प्रकारका कार्य स्थायी होता है, कायर व्यक्ति उसे त्याग देते हैं, क्योंकि उसमें निरन्तर प्रयत्नकी आवश्यकता होती है।

इस तरह हिन्दुस्तानमें भी आजकल ये दोनों प्रवृत्तियाँ चल रही हैं। लोग सरकार द्वारा किये गये छोटे-छोटे अन्यायों एवं अत्याचारोंपर बहुत ज्यादा ध्यान देते दिखाई

  1. यह लेखमाला ७-९-१९१९ के नवजीवनके प्रथम अंकसे आरम्भ हुई थी। शीर्षक था "राष्ट्रीय जीवनका हास और पुनर्जागरण।"