पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देते हैं। उनमें रस आता है; क्योंकि इस तरह हमें चटपटे शब्दोंका प्रयोग करने या सुननेका अवसर मिलता है। ऐसी प्रवृत्तिपर बहुत अधिक ध्यान देनेसे समाज उन्न न होकर गिरता ही है। इसका अर्थ यह नहीं कि अत्याचारोंका मुकाबला न किया जाये बल्कि उनका मुकाबला तो इतनी दृढ़तासे किया जाये जिससे उनकी पुनरावृत्ति ही न हो। हमारे कहनेका अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि हमें इन अत्याचारोंको ही सार्वजनिक जीवनका मुख्य विषय नहीं बनाना चाहिए। इसमें करोड़ों व्यक्तियोंको रस-भी नहीं आ सकता। लेकिन जहाँ जुल्म ही मुख्य वस्तु हो वहाँ लोग भी हमेशा अपने बचाव सम्बन्धी कार्योंमें जुटे रहते हैं और ऐसी परिस्थितिमें उनसे किसी अन्य प्रवृत्तिके बारेमें बात करना भूखेके आगे गीत गानेके समान है।

भारतमें हम अभीतक ऐसी स्थितिमें नहीं पहुँचे हैं। ब्रिटिश सरकारकी राजनीति मिश्रित है। उसमें न्याय है और अन्याय भी। इसका मूल आधार तो न्याय ही माना जायेगा। लेकिन राजनीतिपर अमल करनेवाले अधिकारी कभी-कभी भूल कर जाते हैं, इससे अन्याय होता है और जनताको ये भूलें सुधारनेके लिए प्रयत्न करना पड़ता है। ऐसा करना जनताका कर्त्तव्य है।

लेकिन समाचारपत्रोंका कार्य जिसमें जनताका स्थायी सुख निहित हो उस प्रवृत्तिको खोज निकालना और उसे चलानेमें जनताकी मदद करना तथा उसको राह दिखाना है। हमारी मान्यता है कि ऐसी स्थायी प्रवृत्तियोंमें मुख्य प्रवृत्ति स्वदेशीकी है। इसी तरह जनताको शुद्ध शिक्षा प्रदान करनेका रास्ता ढूंढ निकालना, किसानोंके दरिद्र जीवनको सम्पन्न बनाना, जनता जिन अनेक रोगोंसे पीड़ित है उनका सही निदान करना और इलाज ढूँढ़ना आदि बातें भी समाचारपत्रोंके कर्त्तव्यमें आ जाती हैं। ये सब प्रवृत्तियाँ जनताको ऊँचा ले जानेवाली हैं। इसलिए पाठक देखेंगे कि हम 'नवजीवन' में उपर्युक्त स्थायी प्रवृत्तियोंको ही विशेष स्थान देंगे। जबतक जन- जीवनके सब अंग अच्छी तरह विकसित नहीं हो जाते तबतक सच्चे अर्थोंमें उसकी उन्नति होना सम्भव नहीं। जब जनता ऐसी प्रवृत्तियोंमें भाग लेगी तभी उसे शुद्ध स्वराज्य मिलेगा और वह उसे भोग सकेगी।

इसलिए हम जहाँ-जहाँ अन्याय देखेंगे वहाँ-वहाँ उसका विरोध करेंगे और इसके लिए हमें जो मार्ग सही मालूम होगा उसका सुझाव देंगे। किन्तु मुख्यतः 'नवजीवन'में हम इन स्थायी प्रवृत्तियोंको आगे बढ़ानेके सम्बन्धमें अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। हमें आशा है कि पाठक वर्ग भी हमारे इस निश्चयका स्वागत करेगा।

'नवजीवन' क्लब

'नवजीवन' के उद्देश्यकी सिद्धिके लिए हमारे लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि हम लेख लिखकर अथवा जो ग्राहक बनें उन्हें 'नवजीवन' की प्रतियां भेजकर चुप बैठ रहें। जबतक प्रत्येक शिक्षित अथवा अशिक्षित स्त्री-पुरुषको 'नवजीवन' का सन्देश नहीं मिलता तबतक हमें ऐसा महसूस नहीं होगा कि हम अपना कार्य समुचित रूपसे कर रहे हैं। 'नवजीवन' के लेखक तथा व्यवस्थापक इस महत्त्वपूर्ण कार्यको अकेले नहीं कर सकते। इसमें 'नवजीवन' के ग्राहकों तथा पाठकोंकी पूरी मददकी भी जरूरत