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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वफादार रहती है। सत्य आदि गुणोंके समान वफादारी ऐसा गुण नहीं है जो स्वतन्त्र रूपसे अपने ही सहारे टिक सकता हो। वफादारी किसी तरहके सहारेके बिना नहीं टिक सकती। इसलिए श्री कवर्नटनका[१] कदम प्रत्येक दृष्टिसे सराहनीय है। सचमुच देखा जाये तो यदि सरकार सदा ही ऐसे विवेकपूर्ण कदम उठाती रहे तो विद्रोहके लिए अवकाश ही न रहे।

देवीके सम्मुख की जानेवाली हिंसा

एक भील सज्जनकी ओरसे हमें चार-पाँच कविताएँ मिलीं हैं जिनमें उन्होंने अपने जातिभाइयों तथा अन्य हिन्दुओंसे नम्रतापूर्वक लेकिन दृढ़तासे यह प्रार्थना की है कि दशहरेके पुनीत एवं शुभ दिन देवीके सामने बकरे आदि पशुओंका जो क्रूर वध किया जाता है उसे बन्द किया जाये। हम ये कविताएँ तो प्रकाशित नहीं कर सकते, लेकिन उनके स्तुत्य कार्यकी ओर हमें ध्यान देना ही चाहिए। दया-धर्मको माननेवाले हिन्दूभाई देवीको बलि देनेके बहाने जो हिंसा करते हैं उसे जितनी जल्दी हो बन्द करना प्रत्येक हिन्दू भाईका कर्त्तव्य है। हम मुसलमान भाइयोंसे गो-वध बन्द करनेका अनुरोध करते हैं तो हमें यह हिंसा बन्द करनी ही चाहिए।

बीजापुर में चरखेकी प्रवृत्ति[२]

बीजापुरकी इस प्रवृत्ति तथा इस तरहकी अन्य प्रवृत्तियोंके बारेमें जब मैंने सम्बन्धित बह्नोंसे लेखोंकी माँग की तो उन्हें संकोच हुआ तथा उनकी ओरसे यह प्रश्न पूछा गया कि इस तरह उनका नाम प्रकाशमें आये - ऐसी इच्छा में कैसे कर सकता हूँ? आजतक मैंने उनके कार्योंको गुप्त रहने दिया। मुझे स्वयं भी ऐसे कार्योंको प्रकाशमें लाने में संकोच हुआ, लेकिन मुझे जनताको इस बातकी जानकारी देना भी आवश्यक जान पड़ा कि चरखेका काम चल सकता है, फैल सकता है, वह लोकप्रिय है, वह आर्थिक तथा अन्य दृष्टियोंसे भी लाभप्रद है और उसमें सम्भ्रान्त परिवारोंकी महिलाएँ काम कर रही हैं। 'नवजीवन' के समान साधन न मिला होता तो भी मैंने इन बहनोंकी प्रवृत्तियोंको प्रकाशमें लानेका निश्चय कर लिया था। और इसीलिए लेडी टाटा, लेडी पेटिट और श्रीमती जाईजी पेटिटके नाम मैंने उनकी अनुमतिसे 'सांझ वर्तमान'के[३] पटेटी अंकमें प्रकाशित किये। मेरी अल्प बुद्धिके अनुसार श्रीमती गंगाबेनकी प्रवृत्ति अत्यन्त महत्त्वकी है तथा सारे देशको उसकी जानकारी होनी ही चाहिए। इसमें उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया है। इस धंधे में उन्होंने पहले अपना रुपया लगाया और जब उन्हें कामयाबी हासिल हो गई तभी उन्होंने इस प्रवृत्तिको बढ़ानेके लिए अन्य लोगोंसे सहायता माँगी और वह उन्हें मिली भी। बीजापुर-जैसे छोटे गाँवमें सूत कातनेकी

  1. बम्बई प्रदेशके शिक्षा-निदेशक।
  2. यह टिप्पणी श्रीमती गंगाबेन मजमुदार द्वारा लिखे गये लेखके नीचे दी गई थी। श्रीमती गंगाबेनने चरखा आन्दोलनका संगठन करनेमें गांधीजीकी सहायता की थी। इस लेखमें बताया गया था कि किस तरह गंगावेनने इस कार्यको अपने हाथमें लिया और इसमें अबतक कितनी प्रगति हुई है।
  3. देखिए "स्वदेशी", ११-९-१९१९