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निराशा

इस प्रवृत्तिका इतने विशाल पैमानेपर चलना यह सूचित करता है कि यदि ठीक तरहसे प्रयत्न हों तो थोड़े ही समय में गाँव-गाँव सूत कातनेका प्रसार हो जाये और बुनकरोंके जिस धंधेका ह्रास हो गया है वह फिरसे अपने पैरोंपर खड़ा हो जाये। मैं उम्मीद करता हूँ कि जिन-जिन बहनोंके पास समय है वे सब गंगाबेनका अनुकरण करेंगी।

[गुजराती से]

नवजीवन, २१-९-१९१९

९९. निराशा

उपर्युक्त[१] विचार किसके हैं, यह समाचारपत्र पढ़नेवाले लोग समझ गये होंगे। जनताको ये विचार अच्छी तरह समझ लेने चाहिए, इसलिये हमने लगभग प्रत्येक शब्द और वाक्यका अनुवाद कर दिया है। थोड़ेसे ऐसे वाक्योंको जिनका दूसरोंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है और जिनके यहाँ न देनेसे भाषणकर्त्ताके साथ कोई अन्याय नहीं होता, इसलिए छोड़ दिया गया है कि उनसे बेकार ही जगह भरती। ये उद्गार पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड मैकलेगनके हैं तथा माननीय पं० मदनमोहन मालवीय द्वारा पेश किये गये प्रस्तावके प्रत्युत्तरमें व्यक्त किये गये हैं।

इन उद्गारोंसे प्रकट होता है नये गवर्नर महोदय सर माइकेल ओ'डायरके कार्योंका पूरा बचाव करना चाहते हैं। वे मानते हैं कि जो सजायें दी गई हैं वे उचित हैं और [न्यायालयों द्वारा] जो निर्णय दिये गये हैं वे भी ठीक हैं। सजामें जो कटौती की गई है वह दया भावसे प्रेरित होकर तथा राजा और प्रजाके बीच एकता बनाये रखने के उद्देश्य से की गई है। मुझे कहना चाहिए कि इस कटौतीमें मुझे कोई दया नहीं दिखाई देती, कोई न्याय नहीं दीख पड़ता और उपर्युक्त विचारोंको देखनेपर, सरकारके दृष्टिकोणमें कोई परिवर्तन भी हुआ लक्षित नहीं होता। मैं देखता हूँ कि राजा और प्रजाके मन एक-दूसरे से बहुत दूर हो गये हैं। अधिकारियोंको उनके अपराधोंसे मुक्त करने की बातको में सहन कर सकता हूँ, आयोगको उसके वर्तमान रूपमें स्वीकार करनेमें भी मुझे विशेष आपत्ति नहीं, लेकिन उपर्युक्त विचारोंसे जिस नीतिका आभास मिलता है वह मेरे लिए असह्य है और मेरी इच्छा है कि प्रजा भी उसे सहन न करे; क्योंकि ऐसी नीतिमें मुझे दोनोंकी ही तबाही नजर आती है। इसमें मैं एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और भेदकी खाईको और चौड़ी होते देखता हूँ।

  1. इस टिप्पणीसे पहले पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरके भाषणके एक हिस्सेका गुजराती अनुवाद दिया गया था। गवर्नरका भाषण माननीय पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा प्रस्तुत उस प्रस्तावके सम्बन्धमें था जिसमें भारतीय शासन-तंत्रसे असम्बद्ध व्यक्तियों द्वारा गठित आयोगकी नियुक्तिकी माँग की गयी थी। भाषणके लिए देखिए यंग इंडिया, १७९-१९१९