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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि सरकार यही मानती है कि उसकी ओरसे कोई भूल नहीं हुई, भूल तो सारी जनताकी ही है, तो फिर आयोग नियुक्त करनेकी क्या आवश्यकता है? आयोग जाँच क्या करेगा? दो प्रमुख व्यक्ति - वाइसराय महोदय तथा पंजाबके गवर्नर - सरकारके पक्षमें और जनताके विरुद्ध अपना निर्णय दे ही चुके। यदि सरकार यह मानती हो कि आयोगका काम अधिकारियोंके कार्योंपर कलई पोतना है तो हमारे लिए यह आयोग त्याज्य होना चाहिए। जनताका पक्ष इस प्रकार है: सर माइकेल ओ'डायर गवर्नरके रूपमें अयोग्य सिद्ध हुए हैं। पंजाबमें जो अशान्ति फैली उसका कारण उक्त महोदय की पहलेकी कार्रवाइयां थीं। यदि उन्होंने डॉ० किचलू तथा डॉ० सत्यपालके विरुद्ध अन्यायपूर्ण आदेश जारी न किये होते, मुझे दिल्ली जानेसे न रोका होता तो अशान्ति इतना उग्र रूप धारण न करती। उसके बाद भी यदि गोलियोंकी बौछार न की जाती, तो लोगोंने जो भूलें कीं वे कभी न की होतीं। जाहिर है कि लोगोंके क्रोधको भड़काने में सर माइकेल ओ'डायरके आदेश कारणभूत सिद्ध हुए।

मैं यह नहीं कहता कि प्रजाकी ओरसे पेश किया यह मामला सही है। हो सकता है उसमें अतिशयोक्ति हो, वह बिलकुल झूठा हो, फिर भी सरकार जिसके विरुद्ध उपर्युक्त आक्षेप लगाये गये हैं, और जो इस समय मुद्दालेहके कटघरे में है, इन आरोपोंको मात्र अस्वीकार करके उनसे मुक्त नहीं हो सकती। इस आयोगका एक मुख्य कार्य उपर्युक्त कार्यों पर निर्णय देना है। लोकमत तो इस आयोगसे सन्तुष्ट नहीं है। लेकिनयदि सरकारने अपने कार्यके सम्बन्धमें निर्णय कर ही लिया है तो फिर आयोगकी आवश्यकता ही नहीं रह जाती। जब कि आयोगकी नियुक्ति हो चुकी है वह अभीसे जनताविरोधी भाषणोंके द्वारा उसे विपरीत विचारोंसे भरनेकी कोशिश क्यों कर रही है? सरकारका कर्त्तव्य अप्रैलमें हुई घटनाओंके सम्बन्धमें चुप रहकर उसके पास जो सबूत हों उन्हें आयोगके सामने पेश करके और जनताको उसकी गवाहियाँ देने में मदद करते हुए आयोगकी सहायता करना है।

सर एडवर्ड मैकलेगनने तो अपने भाषणके द्वारा यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि बाबू कालीनाथ राय, लाला हरकिशनलाल, डॉ० सत्यपाल आदि सचमुच अपराधी थे। ऐसा कहकर उन्होंने जनताकी भावनाओंको चोट पहुँचाई है, उन्होंने आगमें घी डाला है, प्रजाको शान्त करनेका दावा करके उसे अशान्त ही किया है। प्रजा नहीं चाहती कि सरकार उसपर दया करे। लाला हरकिशनलाल आदिने यदि अपराध किया है तो वे दयाके पात्र नहीं सिर्फ सजाके पात्र हैं; पर यदि उन्होंने अपराध न किया हो तो उन्हें शुद्ध न्याय मिलना चाहिए।

प्रजाका कर्त्तव्य स्पष्ट है। जो जनता न्याय प्राप्त करनेमें समर्थ नहीं है वह जनता उत्तरदायी राज्यसत्ता प्राप्त करनेके योग्य भी नहीं है। यदि जनता न्याय प्राप्त करने में समर्थ बनना चाहती है तो उसे उत्तेजित हुए बिना शान्तिपूर्वक लेकिन दृढ़तासे काम लेना चाहिए। और जिन लोगों से वह न्याय चाहती है उन्हें न्याय देनेके लिए तत्पर रहना होगा। मेरी अल्प मतिके अनुसार हमारा मामला इतना मजबूत है कि उसे विशेषणोंके आडम्बरकी आवश्यकता नहीं है। यदि वह बिगड़ेगा तो केवल हमारे क्रोध