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पंजाबकी कुछ और दुःखद घटनाएँ

और गफलत के कारण ही बिगड़ेगा। क्रोधसे सम्मोह पैदा होता है, सम्मोहसे स्मृतिभ्रंश बुद्धिका नाश होता है तथा बुद्धिके नाशसे मेरी इच्छा है कि जनता इस शास्त्र-वचनको और स्मृतिभ्रंश (स्मरण शक्तिके नाश) से मनुष्यका सर्वथा विनाश हो जाता है। ध्यानमें रखे।[१]

हम शान्तिपूर्वक क्या कर सकते हैं? स्थान-स्थानपर सभाएँ आयोजित करके उनमें वाइसराय महोदय तथा पंजाब सरकार द्वारा दिये गये भाषणोंके प्रति अपनी नाराजी प्रकट कर सकते हैं। यदि सरकार न्यायपूर्वक व्यवहार न करे तो हम आयोगके समक्ष सबूत पेश करना बन्द कर सकते हैं। पंजाब तथा अन्य स्थानोंपर हमने जो भूलें की हैं हमें उनसे अब बचे रहना चाहिए। सरकारके कार्योंसे चिढ़नेके अभी हमें अनेक अवसर मिलेंगे। क्रुद्ध होनेके बदले यदि हम गम्भीरतापूर्वक विचार करें और सरकारको उसके अन्यायपूर्ण कार्योंमें मदद न दें तो हम अजेय बन सकते हैं। स्वराज्य प्रजाकी सत्यपरता, उसकी दृढ़ता और सहनशीलतामें है। न्याय प्राप्त करनेकी हमारी यह योग्यता स्वराज्य भोगनेकी हमारी शक्तिका मापदण्ड है। यदि जनता इतनी शक्तिका परिचय देगी तो सर एडवर्ड मैकलेगन तथा वाइसराय महोदयके भाषणोंसे होनेवाली निराशासे आशाकी किरणें फूट निकलेंगी।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २१-९-१९१९

१००. पंजाबकी कुछ और दुःखद घटनाएँ

मुझे शोक में डूबे हुए प्रदेशकी दो और घटनाएँ 'यंग इंडिया' के पाठकोंके सामने पेश करनेका दुर्भाग्यपूर्ण कर्त्तव्य निभाना पड़ रहा है। मैं पंजाबको शोकका प्रदेश इसलिए कह रहा हूँ कि मैं देखता हूँ कि एक ओर तो ऐसी घटनाओंकी सूचनाओंका ताँता लगा हुआ है जिनमें यदि घटनाओंके विवरणोंपर विश्वास किया जाये, तो स्पष्ट ही अन्याय किया गया है और दूसरी ओर पंजाब सरकार इस बातपर तुली हुई मालूम पड़ती है कि वह अन्यायका निराकरण नहीं करेगी। मैं इन स्तम्भोंमें पहले ही कह चुका हूँ कि सरकार यदि इतना भी स्वीकार नहीं करती कि परिस्थितिको समझने में उससे गलती हुई है, तो फिर केवल सजाएँ घटानेसे न तो उन लोगोंको कोई सन्तोष होगा जो अपनेको निर्दोष समझते हैं और न आम जनताको ही जो उनको निर्दोष मानती है और चाहती है कि उनके साथ न्याय किया जाये। मैं स्वीकार करता हूँ कि यदि बन्दियोंका अपराध सिद्ध होता है तो मुझे उनकी सजाएँ घटवाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन यदि वे निर्दोष हैं तो उनको बलात् कैदमें रखना अपराधपूर्ण है। पाठक श्री गुरदयालसिंह और डॉ० मुहम्मद बशीरकी ओरसे पेश हुए प्रार्थनापत्र देख सकते हैं। दोनों ही बड़े दिलेर हैं। एक सिख संस्कृतिमें पगा हुआ है और दूसरा एक होन-

  1. भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ६३