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गुजरात से बाहरकी जनताके नाम

ने किया है, जिनके मुकदमोंकी कार्रवाई मैंने देखी है। लेकिन जनताके सामने पेश करनेके लिए मेरे पास पूरे कागजात भी तो नहीं है। पर बन्दीने जितने भी बयान पेश किये हैं, यदि उनको सही मान लिया जाये तो इतना साफ है कि इसमें जाँच- पड़तालकी जरूरत है।

ऐसा ही एक-दूसरा मामला है डॉ० मुहम्मद बशीरका। उनकी पत्नी द्वारा पेश किया गया करुण प्रार्थनापत्र और मृत्यु-दण्ड देनेवाली अदालतके सामने दिया गया खुद डॉ० बशीरका बयान, दोनोंमें कही गई बातें यदि सही हैं तो उनसे यही पता चलता है कि अदालत अपने निर्णय में काफी भटक गई है। डॉ० बशीरने कोई झूठी बात कही हो या न कही हो, परन्तु अदालतके सामने तो निश्चय ही ऐसी कोई चीज नहीं थी जिसके आधारपर वह बचाव पक्षकी तरफसे पेश किये गये सबूतको बिलकुल बेकारका बतलाती, जैसा कि उसने किया है: क्योंकि डॉ० बशीरके बयानसे, जिसे इसी अंकमें अन्यत्र दिया जा रहा है, स्पष्ट है कि उन्होंने अपने ऊपर आरोपित कई बयानों और तथ्योंसे साफ इनकार किया था। डॉ० बशीरने अदालतके सामने जो एक बहुत ही सीधा और संक्षिप्त बयान दिया है, उसके कुछ अंश उद्धृत करके मैं अपनी इस टीकाको बोझिल नहीं बनाना चाहता, परन्तु मैं चाहता हूँ कि पाठक उसे ध्यान से पढ़ लें। पाठक उससे यही नतीजा निकालेंगे कि वह बयान इस लायक तो नहीं ही था कि अदालत उसे इस तरह हिकारतके साथ रद्दीकी टोकरीमें डाल देती।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २४-९-१९१९

१०१. गुजरातसे बाहरकी जनताके नाम

गुजराती भाषी जनता 'नवजीवन' में आशासे कहीं अधिक रुचि ले रही है। जितनी माँग है उसे पूरी करना सम्भव नहीं। जहाँतक में समझ पाया हूँ, उनकी माँग बीस हजार प्रतियोंसे भी पूरी नहीं हो पायेगी। परन्तु हम केवल बारह हजार ही छाप पाते हैं। अहमदाबादमें हमें जो मुद्रक मिले हैं वे दस हजार भी मुश्किलसे छाप सकते हैं। जो छाप सकते हैं वे प्रेस अधिनियमके भयसे 'नवजीवन' नहीं छापते। इसपर भी 'नवजीवन' के हिन्दी संस्करणके लिए आवाज उठाई जा रही है। सचमुच ही, में खुद भी हिन्दी, उर्दू, मराठी और अन्तमें तमिल भाषाओंके संस्करण निकालनेकी सोच रहा हूँ। परन्तु सच्चे कार्यकर्त्ताओंकी कमी है। यदि में हिन्दी, मराठी, उर्दू और तमिल जानने-वाले योग्य सहायक पा सकूँ तो इन भाषा-भाषियों तक अपनी बात पहुँचाने में मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी। यह तो स्पष्ट ही है कि अंग्रेजी तो कोई बड़ा माध्यम है ही नहीं, उससे तो मुट्ठी भर लोगोंके पास ही पहुँचा जा सकता है। मैं तो अधिकसे-अधिक लोगोंके पास पहुँचना चाहता हूँ। और यह केवल भारतीय भाषाओंके माध्यम से ही किया जा सकता है। इसलिए आत्म-त्यागकी भावना रखनेवाले सुयोग्य युवकोंसे मेरी