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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपील है कि यदि वे इसमें पर्याप्त रुचि रखते हैं तो उनको सहायताके लिए आगे आना चाहिए।

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २४-९-१९१९

१०२. भाषण : राजकोटमें स्वदेशीके बारेमें[१]

सितम्बर २५, १९१९

इसके बाद श्री गांधीने अपना भाषण शुरू किया, जिसके दौरान उन्होंने कहा कि मैंने आजकल स्वदेशी वस्त्र तैयार करनेका आन्दोलन शुरू किया है। वस्त्र जनताकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओंमें से एक हैं। अन्नके बाद वस्त्रकी आवश्यकता ही सबसे बड़ी है और उसको देशके अपने साधनोंसे ही मुहैया किया जाना चाहिए। इसके लिए अन्य देशोंपर हमारी निर्भरताने हमें असहाय और गरीब बना दिया है। १९१७-१८ के दौरान देशको विदेशी वस्त्रोंके लिए ही ६० करोड़ रुपए बाहर भेजने पड़े थे। यह देशके लिए शोभनीय नहीं है और इस राशिको देशसे बाहर जानेसे रोकने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए। परन्तु यह तभी किया जा सकता है जब इसके लिए लगातार दृढ़तासे एक आन्दोलन चलाया जाये, जिसमें जनताको भी आवश्यक रूपसे कुछ त्याग करना ही पड़ेगा। श्री गांधीने कहा, मैंने प्रमुख भारतीय विशेषज्ञोंसे इस विषय में सलाह ली है। उनका कहना है कि मिलोंके जरिये समूचे देशके लिए स्वदेशी वस्त्र जुटानेमें पचास वर्ष लग जायेंगे। ऐसी परिस्थितिमें हमें हथकरघोंसे वस्त्र तैयार करना चाहिए। उन्होंने बतलाया कि स्वदेशीका विचार अत्यंत ही लोकप्रिय बन चुका है और उच्चवर्गीय भारतीय महिलाओंने भी बड़े उत्साहपूर्वक सूतकी कताईका काम शुरू कर दिया है। जगह-जगह नये-नये स्वदेशी- भंडार खुलते जा रहे हैं। काठियावाड़में भी स्वदेशीके प्रचारके लिए ऐसे ही तरीके और साधन अपनाये जाने चाहिए। ऐसे आन्दोलनसे किसीका भी कोई नुकसान नहीं, इसलिए इसे शान्तिपूर्ण ढंगसे चलाया जाना चाहिए। महिलाओंको कताई करके अपने फालतू समयका सदुपयोग करना चाहिए। चरखा बहुत सस्ता मिल जाता है और कल्याण इसीमें है कि वे शीघ्रातिशीघ्र घर-घरमें चरखे और करघे चला दें। सुख और आर्थिक सन्तोष प्राप्त करनेका केवल यही एक मार्ग है।

[अंग्रेजीसे]

काठियावाड़ टाइम्स, २८-९-१९१९

  1. राजकोट पहुँचनेपर गांधीजीका बड़ा शानदार स्वागत किया गया था। अध्यक्ष श्री डी० बी० शुक्लके संक्षिप्त परिचयात्मक भाषणके पश्चात् गांधीजीने सभामें भाषण किया था।