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१०३. भाषण : राजकोटमें महिलाओंको सभामें[१]

सितम्बर २५, १९१९

श्री गांधीने कहा कि महिलाएँ फैशन इत्यादिके लिए हमेशा ही विदेशी वस्त्रोंका अधिक व्यापक उपयोग करती आई है। भारतीय महिलाएँ बड़ी ही धर्म-निष्ठ हैं, परन्तु अशिक्षाके कारण उनको यह जानकारी नहीं है कि आजके संसारमें क्या चल रहा है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि उनमें कर्त्तव्य-भावना जगाई जाये तो वे आज जैसी नहीं रह जायेंगी। इसलिए मैं उनको बतलाना चाहता हूँ कि वस्त्रों और अन्य वस्तुओंके मामले में विदेशोंपर उनकी निर्भरता ही उनके वर्तमान अधःपतनका कारण है। भारतीय महिलाओंको पूरी गम्भीरतासे यह तथ्य समझ लेना चाहिए। अन्य देशोंकी तुलना में उनको अपनी निर्धनता देखकर अपना मार्ग निश्चित करनेकी प्रेरणा लेनी चाहिए। इसका सबसे कारगर इलाज यही है कि महिलाएँ चरखे चलाना और पुरुष लोग बुनाई शुरू कर दें। इससे महिलाओंको घर बैठे ही सम्मानपूर्ण जीविका मिल जायेगी और साथ ही वे देशकी भी सेवा कर सकेंगी। श्री गांधीने कहा कि अभी मैं देख रहा हूँ कि आप बहुत ही बढ़िया-बढ़िया साड़ियाँ पहने हुए हैं। आपको इस तरह काम करना चाहिए कि हमारे देशमें कताई-बुनाईका कार्य भी इतना ही बढ़िया होने लगे। दृढ़ इच्छा-शक्ति और लगन हो तो कोई भी काम असम्भव नहीं होता। उन्होंने भाषणके अन्त में सभामें उपस्थित महिलाओंसे अनुरोध किया कि सभामें उत्पन्न अपने क्षणिक जोशको वे कार्यरूपमें परिणत करें और मातृभूमिको सेवाके लिए मैंने जो रास्ता बताया है उसपर बराबर काम करती रहें।

[अंग्रेजीसे]

काठियावाड़ टाइम्स, २८-९-१९१९

  1. गांधीजीने दोपहरके समय वणिक भोजनशाला में आयोजित लगभग ५०० महिलाओं की एक सभामें भाषण दिया था।