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१०४. भाषण : राजकोटकी सभामें[१]

[ सितम्बर २५, १९१९][२]

श्री गांधीने कहा कि मेजर माँसको सभापतिके आसनपर बैठे देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है। यह अंग्रेजों और भारतीयों, दोनोंके ही हितमें है कि दोनों ही विवादहीन और अराजनीतिक मसलोंके सम्बन्धमें एक ही मंचपर मिलें। ऐसी सभाओंसे राजनीतिक जीवनकी तिक्तता कम होती है और दोनों जातियोंमें समरसता बढ़ती है।

वक्ताने सहाय्य मण्डलको शीत ज्वरकी महामारीके प्रकोप और हालके अकालके दौरान बहुत बढ़िया काम करनेके लिए बधाई दी। परन्तु उन्होंने साथ ही सुझाव रखा कि सच्ची और स्थायी सामाजिक सेवा पहलेसे रोक-थामके उपाय करनेमें ही है; वैसे महामारी या अकालके दौरान लोगोंको कष्ट-मुक्त करना अच्छा तो है, परन्तु महामारी या अकालकी पुनरावृत्ति रोकनेके लिए सम्मिलित प्रयास करना उससे भी अच्छा होगा। रोगों या झगड़ोंकी रोकथाम करनेवाला डॉक्टर या वकील अधिक बुद्धिमान और लोकोपकारक होता है। समाज सेवियोंको देशकी सेवा करनेके लिए महामारी या अकाल फैलनेतक रुके नहीं रहना चाहिए। बीमारीकी रोक-थाम सम्बन्धी और सच्ची रचनात्मक सेवा गाँवोंमें की जा सकती है और यदि हम अपने गाँवोंको शुद्ध, स्वच्छ, स्वास्थ्यकर और समृद्ध बनाये रखने में सफल हो जायें तो बड़े-बड़े शहर खुद अपनी देख-भाल कर सकते हैं। इसी वृष्टिसे उन्होंने राजकोटमें आन्दोलनके सिरमौर और उसके प्राण श्री नानालाल कविको सुझाया कि वे गाँवोंमें जाकर गाँववालोंके बीच उनकी तरह ही रहें और उनकी आवश्यकताओं तथा तौर-तरीकोंका अध्ययन करें। तभी उनको समाज-सेवाके सबसे अच्छे तरीकोंका पता चलेगा।

श्री गांधीने कहा कि पहले कभी मेरा खयाल था कि समाज-सेवाका सर्वोत्तम तरीका और संगठन तो यूरोपके लोग ही जानते हैं। परन्तु अनुभवने मेरी राय बदल दी है। मेरी रायमें भारतमें समाज-सेवाको जो एक धार्मिक कृत्य और कर्त्तव्य-जैसी प्रतिष्ठा मिली हुई है, वह अन्यत्र नहीं है। उन्होंने हरिद्वारमें कुम्भ मेलेके प्रबन्धको इसके एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरणके रूपमें पेश किया और कहा कि हमारी संगठन-क्षमता और समाज-सेवाकी प्रवृत्तिको साक्षीके रूपमें हिमालय खड़ा हुआ है। बिना

  1. गांधीजीने शामको 'कनॉट हाल' में आयोजित एक समामें भाषण किया। हालरके पोलिटिकल एजेंट मेजर मॉसने सभाकी अध्यक्षता की।
  2. यंग इंडियाने इस भाषणकी तिथि २४ सितम्बर दी है, लगता है यह भूल थी। यह तिथि २८-९-१९१९ के काठियावाड़ टाइम्समें प्रकाशित विवरणले ली गई है।