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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसने लिखा है। मायादेवीने इसके साथ जो पत्र भेजा है, उसकी भाषा भी उतनी ही आवेशपूर्ण है और उसमें प्रार्थनापत्रके लेखकके नामका कोई उल्लेख नहीं है। मैं ऐसे प्रार्थनापत्रों और याचिकाओंके मसविदे बनाता रहा हूँ। मुझे इसका अनुभव है। इसलिए मैं प्रार्थनापत्र तैयार करनेवालों - चाहे वे वकील हों या अन्य कोई - को आगाह करना चाहता हूँ कि ऐसे मसविदे तैयार करते समय उनको अपने मुख्य लक्ष्यकी बात ही सदा सामने रखनी चाहिए। मैं उनको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि आवेशपूर्ण शब्दजालमें गुँथे विवरणकी अपेक्षा तथ्योंका एक सीधा-सादा, विशेषणहीन विवरण कहीं अधिक सुबोध और प्रभावशाली होता है। प्रार्थनापत्रोंके मसविदे तैयार करनेवालोंको समझना चाहिए कि प्रार्थनापत्र जिनके पास भेजे जाते हैं वे काफी व्यस्त लोग होते हैं, और जरूरी नहीं कि वे प्रार्थीसे हमदर्दी रखते हों; बल्कि कभी-कभी तो उसके खिलाफ उनकी कुछ पूर्व-धारणाएँ बनी होती हैं, और फिर ऐसे सभी लोग लगभग हमेशा ही अपने नीचे काम करनेवाले अधिकारियोंके निर्णयोंको ही बरकरार रखना चाहते हैं। पंजाबके मामले में ऐसे प्रार्थनापत्र वाइसराय या लेफ्टिनेन्ट गवर्नरको ही भेजे जाते हैं जिनके अपने ही पूर्वग्रह रहते हैं। उनके अतिरिक्त ऐसे प्रार्थनापत्र सार्व- जनिक कार्यकर्त्तागण और पत्रकार पढ़ते हैं। इनके पास भी इतना ज्यादा समय नहीं रहता। मैं चूंकि भुक्तभोगी हूँ इसलिए जानता हूँ कि पंजाब से हर सप्ताह मेरे पास कागजातका जो एक ताँता लगा रहता है, उनके महत्त्वके अनुसार उनपर यथोचित ध्यान देना और समय निकालना कितना मुश्किल पड़ता है। मैं अपना यह महत्त्वपूर्ण अनुभव उन नवयुवक देशभक्तों को समझाना चाहता हूँ जो प्रार्थनापत्रों या अन्य प्रकारके मसविदोंके जरिये जनताकी सेवा करनेकी कला सीखना चाहते हैं। मुझे स्वर्गीय श्री गोखले और कुछ समयतक भारत के पितामहके[१] साथ काम करनेका सौभाग्य मिला था। दोनोंने मुझे यही सिखाया था कि अपनी बात समझाने के लिए मुझे जो भी कहना है उसे संक्षेप में कहना चाहिए, कभी भी अपने विषयसे बहकना और तथ्योंसे हटना नहीं चाहिए, कभी भी अपने मुख्य उद्देश्यके दायरे से बाहरकी बातें उसमें नहीं लानी चाहिए; साथ ही विशेषणोंका प्रयोग भी कमसे कम करना चाहिए। मुझे अपने प्रयत्नोंमें यदि कुछ सफलता मिली है तो उसका कारण यही है कि मैं इन दोनों दिवंगत आत्माओंकी सीखपर अमल करता रहा हूँ। इतनी प्रस्तावना और इस चेतावनी के बाद अब में युवक केसरमलके मामलेकी विवेचना करता हूँ।

मुझे चिन्ता इस बात की है कि प्रार्थनापत्रके भोंडेसे मसविदेके कारण नवयुवक केसरमलका इतना अच्छा मामला कहीं रद्दीको टोकरीमें न चला जाये। आश्चर्य तो इस बातका है कि काफी योग्यतापूर्ण और संयमित शैलीमें लिखे इतने सारे प्रार्थनापत्र आते रहते हैं; परन्तु जब भोंड़े किस्मका एक कोई मसविदा सामने आ जाये तो सार्वजनिक कार्यकर्ताका यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह उसमें से भूसी निकालकर अलग करे और फिर उसकी सार वस्तु जनताके सामने पेश कर दे।

  1. दादाभाई नौरोजी।