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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अदालत के सामने बयान दिया था कि वह केसरमलको पहलेसे जानता ही नहीं। प्रार्थनापत्रमें केसरमलके साथ किशनदयालकी अन्तरंग मैत्री सिद्ध करनेके लिए सच्ची-सच्ची घटनाओंका तथ्यपूर्ण विवरण जुटाया गया है। कहा गया है कि किशनदयालने पुलिसके भयके सामने घुटने टेक दिये थे और अब उसमें कहा गया है कि उसे "अपने गलत और बेरहम बयानपर" अफसोस है।
(१०) बचाव-पक्षको तरफसे पेश किये गये सबूतकी ओर बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया गया था, हालांकि उसने काफी प्रतिष्ठित और निष्पक्ष लोगोंको गवाह के रूपमें पेश किया था।
(११) युवक केसरमलके परिवारने सरकारकी सेवा की है।

यदि ये आरोप सही हैं, तो स्पष्ट है कि केसरमलको सजा देना गलत था और उसे रिहा कर देना चाहिए। ऐसे मामले यही साबित करते हैं कि इनकी जांच-पड़ताल के लिए एक निष्पक्ष आयोग नियुक्त करनेको बड़ी आवश्यकता है। सर विलियम विन्सेंटने यह ऐलान करके सभीको आश्चर्य चकित कर दिया है कि ऐसे मामलोंकी जांच करके उनके बारेमें सरकारको रिपोर्ट देनेके लिए दो न्यायाधीश नियुक्त किये जायेंगे। लोगोंका खयाल था कि लॉर्ड इंटरकी समिति ही यह काम कर लेगी। पर मेरा खयाल है कि इस नई समिति से भी जनता सन्तुष्ट हो जायेगी यदि इसमें नियुक्त किये जानेवाले न्याया- धीश दृढ़, स्वतन्त्र और सुयोग्य हों। सर विलियम विन्सेंट इससे कुछ ज्यादा भी कह सकते थे। स्पष्ट है कि वे यह महसूस नहीं करते कि सजा पानेवाले लोगोंके उन सम्बन्धियोंको, जिनके खयाल से गलत सजाएँ दी गई हैं, कितनी पीड़ा और कितनी मानसिक वेदनामें अपने दिन बिताने पड़ रहे हैं।

एक अनुचित पैरवी

केन्द्रीय परिषद् में हुए वाद-विवादको पढ़कर और पंजाब में विधि तथा व्यवस्थाकी प्रतिष्ठाके नामपर की गई हर द्वेष तथा प्रतिहिंसापूर्ण कार्रवाईको सही ठहरानेके लिए की गई पैरवीको देखकर तो न्याय पानेकी रंचमात्र आशा नहीं रह जाती। लेफ्टिनेंट जनरल सर हैवलॉक हडसनने तो "रेंगकर चलने" के आदेशतक को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की है। एक निर्दोष लेडी डॉक्टरके साथ किये गये भीड़के दुर्व्यवहारकी जितने भी कड़े शब्दोंमें निन्दा की जाये, थोड़ी होगी। मैं नहीं जानता कि बहादुर जनरलने अपने भाषणमें जो तथ्य बतलाये हैं उनमें कितनी सचाई है, पर मैं यहाँ अपनी दलीलकी खातिर माने लेता हूँ कि वे सारेके-सारे सच्चे हैं। परन्तु उनको सच मान लेनेपर भी - यह मान लेनेपर भी कि भीड़ने वह सारी शर्मनाक हरकत की थी - ऐसा बर्बरतापूर्ण आदेश निकालना तो न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता कि "कुमारी शेरवुडपर जहाँ हमला हुआ था, उस स्थलसे गुजरनेवाले सभी लोगोंको घुटनोंके वल रेंगकर जाना पड़ेगा।" हमला जिस स्थलपर हुआ था वह शहरके किसी कोने में कोई ऐसा स्थान तो है नहीं जहां आमतौरपर लोगोंकी आमद रफ्त न