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नडियाद और बारेजडीपर जुर्माना

सभीने मेरे दीर्घायु होनेकी कामना की है। मेरी कामना है कि जबतक मैं जीऊँ सत्यान्वेषण करता रहूँ, सत्यपर अमल करता रहूँ और केवल सत्य-चिन्तन ही करूँ। मैं अपने देशवासियोंका आशीर्वाद चाहता हूँ कि मेरी यह कामना पूरी हो।

आशा है कि मुझे तार और पत्र भेजने की कृपा करनेवाले लोग उनकी अलग-अलग प्राप्ति-स्वीकृति भेजनेकी मेरी असमर्थताको क्षमा करेंगे।

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ४-१०-१९१९

१०७. नडियाद और बारेजडीपर जुर्माना

माननीय राव बहादुर हरिलाल देसाई द्वारा बम्बई विधान सभामें नडियाद में अतिरिक्त पुलिस रखे जानेके सम्बन्धमें पूछे गये सवाल और सरकारकी ओरसे दिया गया उत्तर विचारणीय है। सरकारके उत्तरसे हम देख सकते हैं कि छोटे अधिकारी सरकारको किस तरह गलत रास्तेपर ले जा सकते हैं। इसके अलावा यह भी देख सकते हैं कि एक भूलसे किस तरह और भी अनेक भूलें होती चली जाती हैं। सरकारका पहला कदम गलत था। कलक्टर महोदय के पत्र से भ्रम में पड़कर सरकारने नडियाद और बारेजडी में अतिरिक्त पुलिस रख दी। सरकारने देखा कि उससे भूल हुई है, लेकिन भूल स्वीकार करने के लिए वह तैयार नहीं थी; इसलिए सरकारके सम्मुख ऐसी स्थिति आ खड़ी हुई कि किसी भी तरह अपनी भूलका बचाव किया जाये। अब हम इस बातकी जाँच करें कि सरकारने अपना बचाव करते हुए कहीं और तो भूल नहीं की।

राव बहादुरने जो प्रश्न पूछे उनमें से एक यह भी था कि १०, ११, १२ और १३ अप्रैलको नडियाद में कोई उपद्रव हुए थे अथवा नहीं। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न था और इसे पूछने में राव बहादुरका अभिप्राय यह था कि इन तारीखोंके दौरान नडियादमें कोई उपद्रव नहीं हुए इसलिए वहाँ अतिरिक्त पुलिस रखनेका सरकारके पास कोई कारण नहीं था। लेकिन भला यह बात सरकार किस तरह स्वीकार कर सकती थी? इसलिए उत्तर देने में सरकारने गलत मार्ग ग्रहण किया और यह बताया है कि ११ अप्रैल की सुबह अंग्रेजी स्कूलके मुख्याध्यापकपर अनुचित दबाव डालकर बलपूर्वक स्कूल बन्द करवाने के उद्देश्यसे भीड़ इकट्ठी हुई थी। सरकारने यह बात बहुत निश्चयपूर्वक कही है इसलिए यह सच ही होगी, ऐसा मान लेनेका कोई कारण नहीं है। सरकार इस घटनाकी कोई सार्वजनिक जाँच करवानेके बाद इस निर्णयपर नहीं पहुँची है। सरकारने एकपक्षीय पुलिस रिपोर्टके आधारपर उपर्युक्त हकीकतको विधान-सभाके सामने पेश किया है। यदि सरकारने विवेक-बुद्धिसे काम लिया होता तो वह