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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समुचित विशेषणका प्रयोग करके अपने कथनको सीमा बाँधते हुए उस हकीकतको कुछ शंकापूर्वक पेश करती। यदि जनताकी ओरसे एकपक्षीय बात होती है तो सरकार उसकी आलोचना करने को तैयार रहती है। तो फिर सरकारको एकपक्षीय बातके आधारपर निर्णय करनेका क्या अधिकार है? सरकार और रैयतके बीच न्याय करवानेके लिए अदालतें पड़ी हैं तथा पंच नियुक्त करनेके सिद्धान्तको भी वर्तमान राजनीति में स्थान दिया गया है। मैंने जाँच की है तथा मुझे नडियादके प्रमुख नागरिकोंकी ओरसे भिन्न ही कहानी सुनने को मिली है। उनका कहना है कि जोर-जबरदस्ती से स्कूल बन्द करवाने के इरादेसे वैसी कोई भीड़ इकट्ठी नहीं हुई थी। उस दिन दूसरे स्कूल बन्द थे, इसलिए अंग्रेजी स्कूलके लड़के भी अपने मुख्याध्यापकके साथ बकझक कर रहे थे। इसमें उनके साथ बाहरके कुछ व्यक्ति भी मिल गये थे। लेकिन किसी भी प्रकारका अनुचित दबाव नहीं डाला गया था।

अब सरकारके दूसरे उत्तरको लें। इसमें कहा गया है कि जब इस भीड़के एक नेताको गिरफ्तार किया गया तब उसकी जेबमें हिंसा भड़कानेवाली एक पत्रिका मिली थी - जिसके कारण बादमें उसे सजा भी हुई। यह हकीकत पाठकको भुलावेमें डालनेवाली है। पाठक यह समझेगा कि इस "नेता" के पास यह पत्रिका ११ तारीखको ही मिली थी और इसी दिन उसे गिरफ्तार भी किया गया था। प्रमाणसिद्ध तथा उभय पक्ष द्वारा स्वीकृत हकीकत तो यह है कि वह "नेता" ११ को नहीं बल्कि १७ तारीखको गिरफ्तार किया गया था और उपर्युक्त पत्रिका भी उसके हाथमें उसी दिन आई थी। इस प्रकार सरकारका यह दूसरा कथन भी जनताको भ्रममें डालनेवाला सिद्ध होता है।

अब [सरकारके] तीसरे कथनकी जाँच करें। सरकार कहती है कि १२ अप्रैल को भीड़ इकट्ठी हुई थी जिसका उद्देश्य नडियादकी डेरीपर हमला करनेका था, लेकिन इस भीड़को पुलिसने तितर- बितर कर दिया था। मुझे जो खबर मिली है उससे पता चलता है कि भीड़ इकट्ठी हुई थी यह बात सच है, लेकिन यह भीड़ निर्दोष बुद्धिसे डेरीके व्यवस्थापकको डेरी बन्द करनेके लिए समझाने गई थी। और नडियादके अग्रणी नागरिकोंके कहने पर यह भीड़ बिखर गई थी; पुलिसको इसके लिए तनिक भी प्रयत्न नहीं करना पड़ा था। उसकी जरूरत भी न थी।

चौथी बात सच है और वह यह है कि १२ तारीखको नडियाद शहरके बाहर रेलकी पटरियाँ उखाड़ दी गई थीं। यह एक भयंकर तथा शर्मिन्दा करनेवाला काम था और खासतौर से शर्मकी बात यह है कि अपराधी गिरफ्तार नहीं किये जा सके।

अब हम पाँचवाँ कथन लेते हैं कि १३ तारीखको रेलकी पटरियोंको नुकसान पहुँचा था और तार काट दिये गये थे - यह हकीकत दो अर्थी होने के कारण गलतफहमी पैदा करनेवाली है और इससे सरकारकी प्रामाणिकतापर आंच आती है।

यह बात सच है कि १३ तारीखको किसी स्थानपर रेलकी पटरियोंको नुकसान पहुँचा तथा तार काटे गये। राव बहादुरका सवाल नडियादको लेकर था। उक्त उत्तरसे पाठक यह समझ सकता है कि १३ तारीखको जो घटना घटी वह भी नडियादकी