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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिखें उस समय प्रत्येक लेखकको यह मानना चाहिए कि दोहरी सावधानी बरतना उनका धर्म है।

इस अवसरपर हमें एक निष्णात लेखककी कविता याद आती है। उसका सार यह है: विचार किये बिना कुछ भी न लिखो, लिखनेके बाद उसे ध्यानपूर्वक पढ़ जाओ और उसे फिर लिख डालो, दुबारा लिखते समय उसे आधा कर दो। फिर पढ़ो, फिर विचारो और उस आधेका भी आधा करो; इस तरह जब वह एक चौथाई रह जाये तो उसे एक बार फिर पढ़ो और उसमें तनिक भी शंका रह जाये तो पुनः कुछ निकाल दो। फिर भी तुम देखोगे कि सम्पादक इतना निर्दय होता है कि वह उसमें से भी कुछ कम कर देगा। यह सीख नये लेखकोंके लिए है लेकिन अनुभवी लेखक भी इससे बहुत कुछ सीख सके हैं। हम प्रत्येक लेखकसे उपर्युक्त अनुभवपूर्ण सलाहके आधारपर प्रयोग करके परिणामोंको जांचनेका अनुरोध करते हैं। स्वर्गीय गोखलेको यदि एक छोटा-सा भी पत्र लिखना होता तो वे उसके सम्बन्धमें पाँच-दस मिनट विचार करते, भाषा गढ़ते और फिर पत्र लिखते, उसे काटकर दूसरा लिखाते, मित्रोंको दिखाते, विनयपूर्वक उनकी टीका सुनते और इन सबके बाद ही वे अपना पत्र पूरा हुआ समझते थे। इसका फल यह हुआ कि विदेशी भाषापर उनके जैसा अधिकार बहुत ही कम लोग प्राप्त कर सके हैं। उनकी भाषा ओज तथा सत्य आदि गुणोंसे भरपूर थी, फिर भी उसमें कहीं दंश नहीं होता था। जिस प्रकार होशियार राज दीवारकी चिनाई करता है तो उसकी एक भी ईंट गलत रखी हुई नहीं दिखती ठीक वैसा ही अनुभव भाषाके इस कारीगरके शब्द-सौधके सम्बन्धमें उनकी रचनाओंके पाठकोंका है। अपनी मातृभाषाके प्रति तो हमें इससे भी अधिक प्रेम होना चाहिए।

यदि हमारे उत्साही तथा प्रेमी लेखक उपर्युक्त सूचनाओंको ध्यान में रखेंगे तो उनके लेखोंको स्वीकार किये जानेकी सम्भावना बढ़ जायेगी; इतना ही नहीं इस तरह विचाररूपी हथौड़े की चोटसे गढ़े गये लेख जनताके लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २८-९-१९१९

११०. जगत् का पिता - १

"हे किसान! तू सचमुच जगत् का पिता है।" यह बात हम पाठशालामें प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय सोखते हैं। इसका क्या अर्थ है तथा जगत् के "पिता" के प्रति हमारी भक्ति भावना कितनी कम है, इसका थोड़ा-बहुत आभास हमें इस अंक में प्रकाशित श्री चन्दुलालके लेखसे मिलता है।

श्री चन्दुलालने किसानों की स्थितिका संक्षिप्त किन्तु बहुत प्रभावोत्पादक वर्णन किया है। उन्होंने यह लेख काठियावाड़के किसानोंको ध्यानमें रखकर लिखा है लेकिन जो बात काठियावाड़ के किसानोंपर लागू होती है वही बात थोड़े-बहुत अन्तरके साथ समस्त हिन्दुस्तान के किसानोंपर लागू होती है। जबतक शिक्षित-वर्ग किसानोंकी स्थितिका