पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतिक्षण विचार करना चाहिए। हिन्दुस्तान अपने शहरोंमें नहीं, गाँवोंमें बसता है। यदि हम बम्बई, कलकत्ता आदि छोटे-बड़े शहरोंकी आबादीकी गणना करें तो यह संख्या एक करोड़से भी कम होगी। हिन्दुस्तान के अच्छे शहर गिनने बैठें तो वे सौ के अन्दर होंगे ; लेकिन सौ से लेकर हजार व्यक्तियोंकी आबादीवाले गाँवोंकी कोई गिनती नहीं है। इसलिए हम शहरों को खुशहाल बना सकते हों उनमें सुधार कर सकते हों तो भी इन प्रयत्नोंका हमारे गाँवोंपर बहुत कम असर होता है। गड्ढों और डबरों आदिकी सफाई करनेसे पासकी नदीपर - यदि उसमें कुछ कचरा हो तो कुछ असर नहीं होता। वही बात शहरोंपर भी लागू होती है। लेकिन जैसे नदीके सुधरनेपर गड्ढोंका मैल खुद-ब-खुद साफ होता है उसी तरह यदि हम गाँववालोंके जीवन में सुधार और विकास कर सकें तो बाकी सब चीजोंमें अपने-आप सुधार हो सकता है।

'नवजीवन' का ध्यान हमेशा किसानोंकी स्थितिपर केन्द्रित रहेगा। यह स्थिति कैसे सुधर सकती है, इन सुधारोंमें छोटे-बड़े किस तरह भाग ले सकते हैं; यदि हममें से स्वयंसेवकों का एक छोटा-सा ही सही ऐसा जत्था तैयार हो जाये जो सत्यका पालन करते हुए अपने कर्त्तव्यपर आरूढ़ रहे तो थोड़े समयमें हम कितना आगे बढ़ सकेंगे - इस विषयपर बादमें विचार करेंगे।

[गुजराती से]

नवजीवन, २८-९-१९१९

१११. टिप्पणियाँ

अन्याय सहना गलत है

श्री मूलशंकर मावजी याज्ञिक बम्बईसे लिखते हैं कि कुछ गोरे सिपाहियोंने सितम्बरकी १७ तारीखको एक किरायेकी घोड़ागाड़ीपर बलपूर्वक कब्जा कर लिया। उस गाड़ीको किरायेपर लेनेवाले भाटिया सज्जनका सामान बाहर फिकवा दिया और गाड़ीवानके यह कहने पर कि गाड़ी पहलेसे ही किराये पर ली जा चुकी है, दो-तीन बेंत लगाये। वे आगे लिखते हैं, "आसपास के लोगोंमें इतनी हिम्मत न थी कि वे बेचारे गाड़ीवान अथवा भाटिया सज्जनके प्रति न्याय कर सकते।" यह न्याय किस तरह दिया या दिलाया जाये - यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। किसी दूसरे देशमें ऐसा उद्धत व्यवहार करनेपर देखनेवाले बीचमें पड़कर उस व्यक्तिको उद्धतता करनेसे अवश्य रोकते। जिसपर अन्याय हो रहा है हमें अपनी सीमामें रहते हुए उसका बचाव करना आता ही नहीं है। हममें व्यक्तिगत साहसकी इतनी अधिक कमी हो गई है कि एक भी व्यक्ति जोखिम उठाकर असहायको सहायता करनेको आगे नहीं आता। ऐसी स्थितिमें हमारे पास तीन सहज रास्ते हैं। यदि गाड़ीवानमें न्याय-बुद्धि हो और साथ ही कुछ तेजस्विता भी हो तो उसे गोरोंको सीधे पुलिस स्टेशन ले जाकर उनकी उसी समय