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टिप्पणियाँ

रिपोर्ट करनी चाहिए। और यदि उसमें हिम्मत हो तो उसे गोरोंके पते याद रखकर उनको उतारनेके बाद उनकी रिपोर्ट लिखवानी चाहिए। जिस भाटिया सज्जनको अन्यायका शिकार होना पड़ा वे भी उनके विरुद्ध दीवानी अथवा फौजदारी या दोनों ही किस्मकी कार्रवाई कर सकते हैं। और तीसरे, दर्शक भी इस गाड़ीवान तथा भाटिया सज्जनको फरियाद करनेमें सहायता दे सकते हैं। यदि श्री मूलशंकरने स्वयं एक दर्शकके नाते अपना कर्त्तव्य न निभाया हो और गाड़ीवान तथा भाटिया सज्जनकी मदद करने से इनकार किया हो तो हमारा विश्वास है कि अन्यायका और कोई प्रसंग आनेपर वे इतना तो अवश्य ही करेंगे। यह सुझाव तो हमने स्थितिपर सामान्य दृष्टि से विचार करते हुए दिया है। अगर हम सबमें अन्यायके प्रति असहिष्णुताकी भावना पैदा हो जाये तथा उसके सिलसिलेमें हम मामूली ही सही किन्तु उपयुक्त और सही कार्य करना सीख जायें तो भी ऐसी अन्यायपूर्ण घटनाओंको हम जरूर रोक सकेंगे।

स्वदेशी खाँड

श्री पोपटलाल दामोदर पुजाराने स्वदेशी खाँड बरतने की आवश्यकतापर एक लेख लिखकर भेजा है। इस समय हम 'नवजीवन' में यह लेख प्रकाशित नहीं कर रहे हैं लेकिन स्वदेशी खाँड बरतने की आवश्यकताके विषय में हमें कोई सन्देह नहीं है। हम कितना बोझ उठा सकते हैं इस सवाल पर विचार करनेके कारण ही हमने इस लेखको स्थान नहीं दिया है। परन्तु कपड़े के बाद विदेशी खाँडपर ही हमारा बहुत सारा पैसा अर्थात् लगभग १७ करोड़ रुपया [प्रतिवर्ष] बाहर चला जाता है। हमारी महत्त्वाकांक्षा तो यह है कि यदि हम विदेशी कपड़ेको देशमें न आने देनेके महाप्रयास में सफल हो जायें तो उससे प्राप्त सफलता तथा उस प्रयत्न से उत्पन्न हुए उत्साहसे प्रेरित होकर हम अन्य विदेशी वस्तुओंका - जिन्हें हम अपने देशमें तैयार कर सकते हैं। अवश्य त्याग कर सकेंगे। इस समय तो हमारी ऐसी दयनीय स्थिति है कि हम अपनी आवश्यकतानुसार खाँड, कपड़ा तथा अन्य वस्तुएँ तैयार कर ही नहीं सकते। हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि तद्विषयक हमारी कमजोरी साधन-सुविधा अथवा द्रव्यके अभाव के कारण नहीं है, इसका मूल हमारे ज्ञान, साहस, स्वदेशप्रेम तथा उत्साहकी न्यूनतामें है।

धर्मसंकटपर विजय[१]

इस लेखको मैंने 'नवजीवन' में इसलिए स्थान दिया है कि जो धर्मसंकट सन्तोक बेनके सामने आया और अभी तक बना है वैसा अनेक बार हम सबके सामने भी आता है। ऐसे संकटके विरुद्ध संघर्ष करने तथा उसपर विजय प्राप्त करने में ही सच्चा पुरुषत्व और नारीत्व है। एक बात और; मुझे उम्मीद है उपर्युक्त लेखसे कोई व्यक्ति यह अर्थ नहीं निकालेगा कि उसमें वर्ण संकरको कहीं स्थान दिया गया है। हिन्दू-समाज रूपी समुद्र में नीति-विषयक उतार-चढ़ाव होता ही रहता है। सत्याग्रह

  1. यह टिप्पणी श्रीमती सन्तोकबेन गांधी द्वारा लिखित एक लेखके नीचे दी गई थी।