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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आश्रम में सभी लोग एक निश्चित उद्देश्य और रहन-सहनके ढंगके अधीन हैं; वहाँ जाति-भेदको बनाये रखना, मेरे मतानुसार हिन्दू धर्मको न समझने के बराबर है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २८-९-१९१९

११२. भाषण : काठियावाड़ पाटीदार परिषद् में[१]

भाइयो और बहनो,

सितम्बर २८, १९१९

मुझे उम्मीद है कि आप सब अत्यन्त शान्ति रखेंगे और मुझे जो कहना है उसे सुनेंगे। आशा है कि मेरी बात यहाँ उपस्थित हरएक व्यक्ति सुन सकेगा। मैं आप सबका अत्यन्त आभारी हूँ कि आपने मुझे अध्यक्षपद प्रदान किया है।

मुझे सामान्य शिष्टाचारके पालनकी बातको भूलना नहीं चाहिए। मैं सबसे पहले गोंडलकी रानी साहिबाके स्वर्गवासपर शोक प्रकट करता। मुझे मान देनेके लिए जुलूस आदि निकालनेका जो आयोजन किया गया था इस शोकके कारण उसे रद करके आपने एक उचित काम किया है। मुझे जुलूस पसन्द नहीं है। मैं नहीं मानता कि इससे देशसेवा होती है। आपने उसे बन्द करनेका विवेक दिखाया, यह बहुत अच्छा हुआ। ईश्वर स्वर्गीय रानी साहिबाकी आत्माको शान्ति प्रदान करे।

मेरे जो वचन आपको पसन्द आयें उनका तालियोंसे स्वागत न कीजिएगा; और ठीक उसी तरह जो शब्द आपको न रुचें उनका तिरस्कार भी न कीजिएगा। भारतकी प्राचीन परिपाटीका पालन कीजिए; भाषणकर्त्ताके वचन पसन्द आयें तो उनका स्वागत तालियों द्वारा नहीं, उनपर अमल करके कीजिए; और पसन्द न आयें तो उनकी हँसी उड़ाकर नहीं, कृत्य से बताइये कि इन्हें हम पसन्द नहीं करते।

हिन्दुस्तान शास्त्रोंमें बताये गये तीन युगोंसे निकल चुका है और इस समय चौथे युगसे गुजर रहा है। सतयुगके लक्षण जिनका कि लोग पालन करते थे, सब बहुत अच्छे थे। आजका युग कठिन है; सत्ययुगके सर्वथा प्रतिकूल है। सत्ययुगकी व्याख्या करने अथवा उसकी झाँकी दिखानेके लिए इतना कहना जरूरी है कि उस युगमें सत्य प्रधान था और सब सत्यवादी थे। कलिकालमें तो वहीं सत्यका पालन करते हैं जिनसे शांतिपूर्वक बैठा नहीं जाता; अतः कलिकालमें सत्यकी स्थापनाके आग्रहकी, सत्याग्रहकी आवश्यकता है। सत्ययुग में सत्यका आग्रह किसलिए? उस समय सत्यसे कोई उकताता ही नहीं था। उसके पालनका पूरा प्रयत्न करते हुए भी लोगोंको लगता था कि कहीं कोई कमी रह गई है। सत्ययुगमें सब कुछ सत्यमय था। सर्वत्र सत्यका प्रवर्तन था। स्त्रियाँ पुरुषोंकी ओर स्थिर दृष्टिसे देख सकती थी। उनको घूंघट निकालनेकी जरूरत नहीं थी। पुरुष अपलक दृष्टिसे स्त्रियोंको देख सकते थे लेकिन उनके मनमें विकार उत्पन्न नहीं

  1. सौराष्ट्र में गोंडल राज्यके मोटी मारडमे; गांधीजीने परिषद्को अध्यक्षता की थी।