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भाषण : काठियावाड़ पाटीदार परिषद् में

होता था। अब स्त्री-पुरुष परस्पर टकटकी बाँध कर नहीं देख सकते, और परिणाम-स्वरूप सब पाप कर रहे हैं। विषयोंके श्रवणसे मनुष्य मूढ़ हो जाता है। मोहकी इस मूढ़तासे स्मृति जाती रहती है, स्मृतिके जानेसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और बुद्धि भ्रष्ट होनेसे अन्ततः नाश हो जाता है।[१]

जगत् में - हिन्दुस्तानमें, मैं इस तरहका नाश होते देख रहा हूँ; जगत् में विषयवासना बढ़ गई है और मेरा हृदय यह देख काँप उठता है। स्त्री-पुरुषका जन्म विषयवासना अथवा कामवासनाके लिए नहीं हुआ है। मनुष्यत्व और स्त्रीत्व प्रकट करनेके लिए हमें अपनी विषय-भोगकी इच्छाओंपर यत्नपूर्वक संयम रखना चाहिए, उन्हें किसी तरह की छूट नहीं देनी चाहिए। इस समय स्थिति खराब है। हम विषयी लम्पट बन रहे हैं। जब यह दशा दूर होगी तभी सब निर्भय बन सकेंगे। आजके युगमें स्त्री और पुरुष दोनों ही भयभीत हैं। संयमसे विषयोंको रोक सके तो हिन्दुस्तान में फिर सत्ययुग आ जायेगा।

भारत तीस करोड़की आबादीवाला देश है। उसमें साढ़े सात लाख गाँव हैं। प्रत्येक गाँव में [औसतन] चार सौ व्यक्तियोंकी आबादी है। यहाँ ढाई हजार हैं तो कहीं पाँच हजार। सामान्यतः एक हजारसे कमकी आबादी है। किसी स्थानपर केवल ५० लोग ही रहते हैं। जहाँ इतनी कम आबादी है वहाँ स्थिति दयाजनक हो सो बात नहीं। [प्रायः] जितने लोग उतने रास्ते होते हैं; इसलिए यदि एक गाँवमें एक हजार व्यक्ति हों और वे एक हजार दिशाओंकी ओर जाते हों तो वहाँ नाश ही होता है। गाँवके छोटा होनेके कारण किसीको दुःखी होनेकी आवश्यकता नहीं। दुःख तो उसकी स्थितिपर हो सकता है। सत्ययुगका विचार करें तो उस कालमें अयोध्यानगरी श्रेष्ठ थी। उस समय बम्बई जैसे शहर न थे। बम्बईकी जैसी सभ्यताकी कोई आवश्यकता मालूम नहीं होती, लेकिन ऐसे शहर हैं तो रहें। किन्तु हिन्दका आधार उसके गाँवोंपर है। यहाँ किसान मुख्य है। प्रति सैकड़ा ७३ व्यक्ति किसान हैं। इसलिए यदि हिन्दुस्तानके किसान जड़ हों, दीन हों तो हिन्दुस्तान भी जड़ और दीन है। हिन्दुस्तान धनवान है अथवा गरीब इसका अन्दाजा करोड़पतिकी आयसे नहीं उसके किसानकी आयसे लगाया जाता है। हिन्दकी नीति अनीति वेश्यासे नहीं बल्कि किसानकी स्त्रीसे मापी जाती है।

भारतभूमि जब पुण्यभूमि थी उस समय उसके शहरोंका क्या हाल था? मनुष्योंके हृदय उस समय स्वच्छ, निष्कलुष और निष्कपट थे। और इसी तरह हिन्दुस्तानके घर भी उस समय शुद्ध एवं स्वच्छ होते थे। उनमें रहनेवाले व्यक्ति अपने मधुर सौरभसे उन्हें भर देते थे। पाँच व्यक्तियोंके रहनेका स्थान घर और पचास व्यक्तियोंके रहनेका स्थान गाँव। यहाँ मैंने देखा कि लोग जहाँ-तहाँ सो रहे थे, मैंने सब ओर छतोंसे बरसात का पानी टपकते देखा है।[२] हम इतने आलसी हैं तो भी हमें कमसे-कम टपकते

  1. देखिए भगवद्गीता, अध्याय २, ६२-६३
  2. गुजराती रिपोर्ट यहाँ दोषपूर्ण है। काठियावाड़ टाइम्समें दी गई भाषणकी रिपोर्टसे इसका मिलान कर लिया गया है।