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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पानीको एक जगह इकट्ठा करनेका प्रबन्ध कर लेना चाहिए। मैंने यहाँकी गलियोंको बहुत मैला पाया। बरसात होनेपर भी किसानोंके घर साफ होने चाहिए तथा गलियाँ ऐसी होनी चाहिए जिनमें चलनेमें कोई कष्ट न हो। चाहे कितनी ही बरसात क्यों न हो फिर भी वहाँपर कीचड़ नहीं होनी चाहिए। गाँवोंके रास्ते खराब होंगे तो बैलोंको चलने में कष्ट होगा। गाँवोंकी सरकार तो हमीं लोग हैं। हमें आलसी एवं जड़ नहीं होना चाहिए। प्रजा सीधी और सच्ची हो तो राजा टेढ़ा हो ही नहीं सकता। प्रजा अन्यायी तथा फिजूलखर्च हो तो राजा भी वैसा ही होगा। राजा प्रजाके लिए एक छत्रके समान है। आपके गाँवका प्रबन्ध आपके अपने हाथमें होना चाहिए; आपको अपने गाँवकी सारी व्यवस्था स्वयं करनी चाहिए। सरकार साढ़े सात लाख गाँवों को साफ नहीं कर सकती।

मारड गाँव यहाँ रहनेवाले लोगोंका गाँव हैं।[१] घर साफ न रखनेपर जिस तरह स्त्री फूहड़ मानी जाती है उसी तरह यदि गाँवके व्यक्ति गाँवको साफ न रखें तो उन्हें फूहड़ माना जायेगा। मैं आपका मेहमान हूँ। आप मुझपर प्रेमकी वर्षा कर रहे हैं। मारड गाँव कितना अधिक सुन्दर है फिर भी उसकी गलियोंकी स्वच्छताके बारेमें मुझे इतना कहना पड़ा। यह कोई मारड गाँवकी ही विशेषता नहीं है वरन् हिन्दुस्तानके साढ़े सात लाख गाँवोंका यही हाल है। अन्य गाँवोंकी अपेक्षा यहाँकी हालत अधिक खराब हो, सो बात नहीं। लेकिन चूंकि आपने मुझे इस पदपर बिठाया है इसलिए मुझे इतनी बात अवश्य कहनी चाहिए कि दूसरे भले ही पाप करते रहें, लेकिन आप तो आजसे ही गाँवको सुधारनेका काम शुरू कर दें। हमारी जांच हमारी गलियों [की स्वच्छता] से होनी चाहिए। हम अपने परिवारोंका ही शास्त्र जानते हैं किन्तु परिवारके शास्त्रसे गाँवके शास्त्र और फिर शहरके शास्त्र तथा अन्ततः हिन्दुस्तानके शास्त्रकी ओर नहीं बढ़ सके हैं।

शंकराचार्य - जैसे व्यक्ति दक्षिणसे लेकर ठेठ उत्तरतक घूम आये थे। उससे पता चलता है कि प्राचीन कालसे ही हिन्दुस्तान एक देश था, रास्ते भी वैसे ही [अच्छे] थे। ग्रामव्यवस्था अच्छी थी। उस समयकी गलियोंकी स्वच्छता हमें विरासतके रूपमें प्राप्त हुई है। उसे हम फेंके दे रहे हैं। हम कोल्हूके बैलकी तरह जहाँ हैं वहीं चक्कर लगा रहे हैं। हमारी गति सीधी होनी चाहिए। अपने दोष हमें स्वयं ही दूर करने हैं। हमें गुण ग्रहण करने चाहिए; गुणग्राही होना चाहिए। गाँवोंको आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। दूसरेकी सहायता लेना दूसरोंपर निर्भर रहना है। दूसरे-पर भरोसा रखकर यह मानना ठीक नहीं कि वे हमारा गाँव साफ कर देंगे। हम नीतिमय जीवन व्यतीत करें। दूसरे बीमार पड़ें तो उनकी सहायताके लिए दौड़े जाओ; कोई मर जाये तो वहाँ जाकर मदद करो। इतना करनेके अतिरिक्त घर, रास्ते आदि स्वच्छ रखो। ऐसी व्यवस्था करो जिससे कुओंमें वृक्षोंके पत्ते न गिरें। जब जरूरत पड़े तब उनकी सफाई करो। पानी मोतीके समान स्वच्छ होना चाहिए। मन्दिरोंको साफ रखो; पुजारी भी मूर्ख नहीं होना चाहिए, उसे ज्ञानी होना चाहिए। [भजनकीर्तन

  1. इसका काठियावाड़ टाइम्समें दी गई भाषणकी रिपोर्टसे मिलान कर लिया गया है।