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भाषण : काठियावाड़ पाटीदार परिषद् में

आदिके लिए] वाद्ययन्त्र कर्णप्रिय होने चाहिए। ठाकुरजीकी पोशाक शुद्ध खादीकी अथवा अतलसकी होनी चाहिए। जापानसे आये हुए सड़े-गले वस्त्र ठाकुरजीको नहीं पहनाये जाने चाहिए। मैं तो कमसे कम ऐसी मूर्तिको प्रणाम न करूँ। यदि आप तुलसीदाससे प्रणाम करवाना चाहते हों तो रामके हाथमें धनुष होना ही चाहिए। मैं लोगों की कीमत उनके मन्दिरोंमें ठाकुरजीकी दशाको देखकर आँक लेता हूँ।

एक तरफ [मन्दिरपर फहराती] ध्वजा, और दूसरी ओर मस्जिद, बाग तथा पारसियोंका मन्दिर - किसी और जगह लोग इसे कदापि सहन न करें लेकिन हिन्दुस्तानका धर्म उदार है। पारसी मन्दिर अथवा गिरजाघरके प्रति उदारभाव रखो, ऐसी थी हमारी स्थिति। हमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे हम गाँवके सब लोगोंको शिक्षा प्रदान कर सकें। शिक्षक गाँवका ही व्यक्ति होना चाहिए। शास्त्री पैसा लेकर विद्यादान देनेवाला व्यक्ति नहीं होना चाहिए। गाँवके लोगोंको उसे आजीविका प्रदान करनी चाहिए। यदि हम गाँवके अपाहिजों और गरीबोंकी सेवा करें तो हम अच्छे सेवक कहला सकते हैं। कोई भी मवेशी दुबला नहीं होना चाहिए। हमारे अपने गाँवमें ही सब वस्तुएँ पैदा होनी चाहिए। यदि सभी वस्तुएँ बाहरसे आयें तो हम अपने गाँवके प्रति वफादार नहीं कहे जा सकते।

किसानोंको अभी अपने धनका उचित उपयोग करना सीखना है। ज्ञान लेनेमें पैसा खर्च करना एक अच्छी बात है। विद्यापीठ अथवा शाला कैसी होनी चाहिए। शाला जैसी दूसरे कहें वैसी न होकर जैसी हम चाहें वैसी होनी चाहिए। जहाँ अंग्रेजी अथवा व्यर्थकी चीजें सिखाई जाती हैं वह सच्ची पाठशाला नहीं है। जहाँ धर्मकी शिक्षा दी जाती है वही सच्ची पाठशाला है। समुद्र के किनारे रहनेवाले लोगोंके लिए जैसे तैरना सीखना अनिवार्य है वैसे ही प्रत्येक भारतीयको बुनाई और खेतीका काम सीखना ही चाहिए। इनको सीखने में विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता। मुझे इसमें कोई कठिनाई महसूस नहीं हुई और सफलता प्राप्त हो गई। यदि गाँवमें चार-पाँच व्यक्ति अच्छे हों तो वे सबको एक कर सकते हैं। उनमें सेवाधर्म होना चाहिए।

यदि कोई कठिनाई है तो वह एक ही है, और वह है [हमारी] भयभीत दशा। हम अधिकारियोंसे भागते फिरते हैं। हमें अधिकारियोंका पूरा-पूरा सम्मान करना चाहिए, उन्हें भाई समझकर उनके साथ विनयका व्यवहार करना चाहिए। लेकिन आज वे हमें जिस तरह दबाते हैं उसी तरह हम दब जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम रबड़की गेंद के समान मुलायम न हों बल्कि पत्थरके समान कठोर हों। पत्थरकी गेंदको पैरके नीचे दबानेवाले मनुष्यकी कैसी दशा होती है यह बात वही समझ सकता है जिसने पत्थरकी गेंदमें लात मारी हो। कहनेका अभिप्राय यह है कि यदि आप दवेंगे तो अधिकारी आपको दबायेंगे। इसमें उनका दोष नहीं है । हममें सत्य और दयाकी भावना होगी तभी हम निर्भय बन सकेंगे। सत्य अथवा दया न हो तो मनुष्य निर्भय नहीं हो सकता। हम दुनियासे दयाकी अपेक्षा करते हैं तो सर्वप्रथम हमें स्वयं दयामय होना चाहिए। यदि ७३ किसान राक्षसोंके समान निर्दय हों तो बाकीके २७ किसानोंको नष्ट-भ्रष्ट कर डालें, और बादमें आप लोग यादवोंकी भाँति आपसमें कट मरें। आपका बल आपकी जमीन है।

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