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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२७ [प्रतिशत] किसान ७३ [प्रतिशत] किसानोंको निकाल बाहर करें और सारी खेती खुद करें - सो तो हो नहीं सकता। आज जैसी स्थिति है उसमें तो यदि ये ७३ किसान निकलने को तैयार हों तभी उन्हें निकाला जा सकता है। अभीतक एक भी राजा ऐसा नहीं हुआ, जो आपसे आपकी जमीन छीन सका हो। राजाका पद सही अर्थों में तो आपके पास ही है। दूसरोंको राजाके पदपर प्रतिष्ठित करनेवाले आप लोग स्वयं रंक कैसे हुए? यदि आपने सत्य, त्याग, विवेक और ज्ञानका त्याग कर दिया हो तो उसे पुनः प्राप्त करें। जहाँ शिक्षक आठ रुपये वेतन लेकर पहाड़ा सिखाते हैं वह सच्ची पाठशाला नहीं है। जिन प्रौढ़ व्यक्तियोंको लिखना-पढ़ना न आता हो उन्हें लिखना पढ़ना सिखानेवाली शाला अच्छी शाला है। मेरी स्त्री शिक्षित न भी हो, तो भी मैं अपने बच्चे उसके सुपुर्द कर दूंगा। सत्य और विवेककी शिक्षा जितनी अच्छी आप दे सकते हैं वैसी कोई मामूली वेतन पानेवाला बाहरी शिक्षक कभी भी नहीं दे सकता। जरूरत पड़े तो [शिक्षकको] पैसे देकर [अपने बच्चोंको] अक्षर ज्ञान करवाओ और बारहखड़ी सिखानेके बाद फिर चिन्ता मत करो, अपना काम करो। बच्चे स्वयमेव शुद्ध विचार करना सीख जायेंगे। सारे हिन्दुस्तानका, तीस करोड़ मनुष्योंका विचार करो।

अन्तिम बात स्वदेशीके सिद्धान्तकी है। सौ वर्ष पूर्व भारतके किसान [भारतमें बने] सूतके वस्त्र पहनते थे। भारतके बुनकर शुद्धसे-शुद्ध बारीक कपड़ा बना सकते थे। इसमें यह विशेषता थी कि ढाकाकी मलमल चाहे कितनी ही बारीक क्यों न हो उसमें से अंग नहीं झलकते थे। अंग दिखाई न दे, ऐसी थी उसकी खूबी। वस्त्र पहननेके बावजूद विवस्त्र दिखना हो तो जापानके वस्त्र पहनिये।

आपकी पत्नियाँ, बहनें और माताएँ जब खाली हों उस समय नींद, गाली-गलौज, टंटे-फसादमें समय न गँवाकर जिसमें धर्मका निवास है ऐसा शुद्ध और पवित्र सूत कातनेमें अपना समय व्यतीत करें तो कितना अच्छा हो? आपके पास सोनेके आभूषण हों तो मुझे उनकी चिन्ता नहीं। भले ही उनमें वृद्धि हो। लेकिन सूत कातनेसे आपमें जो निखार आयेगा वह जापान, फ्रांस अथवा इंग्लैंड [की बनी वस्तुओं से कभी नहीं आ सकता। इस घरेलू धंधेके नष्ट होनेसे हमारी कैसी विषम स्थिति हुई है, आप इसपर विचार करें। इस पुख्ता और अनुभवी आदमीके ये वचन याद रखना। यदि याद नहीं रखोगे तो पीछे पछताओगे। जो आपने नहीं देखा, सो मैंने देखा है। आपकी माताकी ओर कोई आँख उठाकर नहीं देख सकता। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब वह बाहर मजूरीके लिए जाती है तब उसकी क्या हालत होती है? घरेलू कामधन्धेके अभाव में बाहर मजूरी करनेके लिए जानेवाली अनेक माताओं और बहनोंपर [पुरुषों द्वारा] चारों ओर जो अत्याचार किया जा रहा है उससे कँपकँपी छूटती है। दाहोद में, सड़कों पर नियुक्त ओवरसीयर लम्पट एवं पाखंडी होनेके कारण सड़कोंपर काम करनेवाली बहनोंका शील भंग करते हैं। उन्हें आप मार डालें, मैं यह बात नहीं कहता, लेकिन आप स्वयं मर सकते हैं। स्त्रियाँ खेतोंमें काम करती हैं उस समय आप जैसे वीर पुरुष उनके शीलकी रक्षा करते हैं, फिर भी आप उन्हें बाहर जान