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भाषण : काठियावाड़ पाटीदार परिषद् में

देते हैं? उस पुरुषको धिक्कार है जो अपनी बहनों और माताओंके शीलकी रक्षा नहीं कर सकता। यदि आप शीलकी रक्षा नहीं कर सकते तो आत्महत्या कर लें।

[गुजरातीसे]

गुजराती, १२-१०-१९१९

११३. भाषण : काठियावाड़ पाटीदार परिषद् में[१]

[सितम्बर २८, १९१९]

प्रस्तावोंको पास कर देने के साथ ही आपके कर्त्तव्यकी इति नहीं हो जाती। उन्हें कार्यान्वित करना है - और वह भी अविलम्ब ही। आपने मेरी आँखोंमें आँसू देखे हैं, उनका कारण केवल मारडकी दशा ही नहीं, सारे देशकी हीन दशा है। उसे मिटाने में अपना योग दे सकते हैं, परन्तु उसे पूरी तरह मिटानेके लिए और मेरे मनके दाहको बुझाने के लिए सम्पूर्ण भारतको आगे आना होगा। काठियावाड़ मेरा जन्म स्थान है, इस नाते मेरा इसपर सबसे ज्यादा अधिकार है। आप उठें और प्रतिज्ञा करें कि महिलाओं समेत आप सब अपने लिए सूत कातेंगे और यदि आवश्यक समझें तो स्वयं अपने कपड़े बुनेंगे। इतनी अधिक संख्या में स्त्रियों और पुरुषोंको खड़े होकर प्रतिज्ञा लेते हुए देखने में मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है।

परिषद्का कार्य समाप्त हो गया है। मेरी कामना यही है कि काठियावाड़ और भारतने मुझपर जो प्रेमकी वर्षा की है उसका मैं सत्पात्र होता। आपके लिए मेरा अन्तिम सन्देश आपसे यह प्रार्थना है कि उस पत्रको पढ़ें जिसका मैं सम्पादन कर रहा हूँ। कितना अच्छा होता कि मैं उसे निर्धनोंको निःशुल्क ही दे सकता। आप उसे ध्यान से पढ़ेंगे तो उससे आपको अपनी प्रतिज्ञाको कार्यान्वित करनेमें सहायता मिलेगी। यदि विद्वज्जन मेरे पत्रको न पढ़ें तो इस चूकको मैं अनदेखा कर सकता हूँ; परन्तु किसानों और कारीगरोंकी उपेक्षासे मेरा हृदय दुखेगा। आप हर सप्ताह उसकी एक प्रति लेकर अपने चौकमें उसका सार्वजनिक पाठ करें। उसका वार्षिक चन्दा रु० ३-८-० है। यदि आप निःशुल्क ही चाहो तो उसका प्रबन्ध भी हो सकता है; यदि ऐसा हो तो आप श्री चन्दूलालकी मार्फत अपनी माँग पेश करें। इस पत्रको चलानेका ध्येय धन कमाना नहीं है। इसका ध्येय है जनताकी सेवा करना और अपनी प्यारी मातृभूमि की उन्नति में सहायक होना।

मैं दुबारा सदस्यों और स्वयंसेवकोंको धन्यवाद देता हूँ।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १५-१०-१९१९

  1. इस सम्मेलनमें गांधीजीका यह समापन भाषण था।